गुरुवार, 31 अक्टूबर से छठ पूजा का पर्व शुरू हो रहा है। शनिवार, 2 नवंबर को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी है। इस तिथि पर संध्या के समय सूर्य को विशेष अर्घ्य देने की परंपरा है। रविवार, 3 नवंबर को सुबह भी सूर्य को विशेष अर्घ्य दिया जाएगा, पूजा की जाएगी।
छठ पूजा पर पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा
षष्ठी तिथि यानी छठ पूजा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करके सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार सूर्य नौ ग्रहों का राजा है। ये ग्रह सिंह राशि का स्वामी है। सूर्य देव शनि, यमुना नदी और यमराज के पिता हैं। शनि पुत्र है, लेकिन इन दोनों का संबंध शत्रुता का माना जाता है। सूर्य देव को मान-सम्मान का कारक ग्रह माना गया है। छठ पूजा पर सूर्य को कुमकुम या लाल चंदन, लाल फूल, चावल चढ़ाना चाहिए। दीपक जलाना चाहिए। तांबे के लोटे से जल चढ़ाना चाहिए। सूर्य पूजा की सरल विधि…
- सूर्य पूजा के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करें। लाल चंदन और लाल फूल की व्यवस्था रखें।
- लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर मिला लें। लाल फूल भी डाल लें। थाली में जलता हुआ दीपक और पानी से भरा लोटा रख लें। ये चीजें अपने पास रखें।
- इसके बाद ऊँ सूर्याय नमः या ऊँ आदित्याय नम: मंत्र का जाप करें। सूर्य को प्रणाम करें।
- तांबे के लोटे से सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जाप करते रहें। इस प्रकार से सूर्य को जल चढ़ाना सूर्य को अर्घ्य देना कहलाता है।
- सूर्य मंत्र- ऊँ सूर्याय नमः अर्घ्यं समर्पयामि कहते हुए पूरा जल समर्पित कर दें।
- अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य देव के दर्शन करें।
- दीपक जलाकर सूर्य देव की आरती करें। सात परिक्रमा करें और हाथ जोड़कर प्रणाम करें।