मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में आज पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने ‘भावना भव-नाशिनी’ और पार्श्वनाथ प्रभु के आज श्रावण सुदि 6 के दिन निर्वाण (मोक्ष) कल्याणक के विषयों पर प्रवचन दिया।
धर्म हर किसी को फलदायक होता हैं, क्रियात्मक धर्म यानी साधना, प्रवृत्ति, व्यवहार आदि और गुणात्मक धर्म यानी भावना, परिणति, निश्चय आदि ये 2 तरह के धर्म होते हैं। सामयिक में उपकरण यानी क्रियात्मक और समता यानी गुणात्मक दोनों धर्म आते हैं। धर्म की क्रिया अलग अलग और फल भी अलग अलग। आनंदघनजी म. ने बताया हैं की 2 परिबल होते हैं, शरीर का ममत्व और मन का महत्व। गुणात्मक धर्म संख्या या परिमाण में क्रियात्मक धर्म से कम भी हो तब भी अनंत गुना फल देने वाला होता हैं। ऐसा कहा जाता हैं जिसमें रस (गुणात्मक धर्म) नहीं, उसमें कस नहीं। जिन वचन का श्रवण करना श्रुत ज्ञान हैं, उसपे चिंतन करना चिंता ज्ञान हैं, फिर सही और गलत की पहचान भावना ज्ञान हैं, फिर से चिंतन करके जो तत्व (सार) आता हैं वो भावना शुद्ध।
भगवान पार्श्वनाथ की आत्मा का 10वें देवलोक से पधारकर माता के गर्भ में च्यवन हुआ, काशी-वाराणसी में जन्म के 30 वर्ष पश्चात 300 के साथ दीक्षा अंगीकार की, दीक्षा पश्चात आदेश्वर भगवान का प्रथम पारणा इक्षु रस से हुआ बाकी के 23 तीर्थंकरों का प्रथम पारणा खीर से हुआ, पार्श्वनाथ प्रभु का सम्मेद शिखरजी तीर्थ पर मासक्षमण तप करके 33 साधुओं के साथ काउसग्ग मुद्रा में निर्वाण (मोक्ष) हुआ, आदेश्वर, नेमिनाथ और महावीर प्रभु का निर्वाण पद्मासन मुद्रा और बाकी के 21 तीर्थंकरों का निर्वाण (मोक्ष) काउसग्ग मुद्रा में हुआ।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार आज प्रवचन पश्चात साधारण फंड के मुख्य लाभार्थियों का बहुमान किया गया, वहीं ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।
धर्म हर किसी को फलदायक होता है: ललितशेखरविजयजी म. सा
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