- वसईवासियों को मोक्ष प्राप्ति में बाधक तत्त्वों से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण का वसई में मंगल पदार्पण
- वसईवासियों ने अपने आराध्य का किया भव्य स्वागत-अभिनंदन
10.06.2023, शनिवार, वसई, मुम्बई (महाराष्ट्र)। अरब सागर के तट पर अवस्थित भारत की मायानगरी मुम्बई में ज्ञान की गंगा को प्रवाहित करने और उससे जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग शनिवार को वसई में पधारे तो मानों वसई अध्यात्म के आलोक से जगमगा उठी। वसई क्षेत्र की जनता आचार्यश्री के स्वागत में उमड़ आई। नालासोपारा से वसई की दूरी भले ही अल्प थी, किन्तु दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की जगह-जगह उपस्थिति के कारण आचार्यश्री को कई घंटों का समय लगा। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री वसई में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
कल्पतरू ग्राउण्ड में आयोजित मंगल प्रवचन में जनता की विराट उपस्थिति थी। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने वसईवासियों को उद्बोधित किया। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मोक्ष एक शब्द है, किन्तु अध्यात्म साधना का परम लक्ष्य मोक्ष होता है। भले उसे निर्वाण कह दें, सिद्धालय कह दें अथवा सर्व दुःखमुक्ति की प्राप्ति शाश्वत रूप से हो जाती है, उसे मोक्ष कहते हैं। साधु दीक्षा लेने का मूल आधार है मोक्ष प्राप्ति की कामना। मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करना और उसके लिए प्रस्थान करना। मोक्ष प्राप्ति में कई बाधक तत्त्व बताए गए हैं। इनमें एक बाधक तत्त्व बताया गया कि जो आदमी चंड अथवा गुस्सैल होता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। क्रोध है तो कर्मों का बंध नहीं टूटेगा, सम्पूर्ण रूप से संसार नहीं छूटेगा। मोक्ष प्राप्त करना है तो गुस्से का त्याग करना आवश्यक होता है। आदमी को गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। इससे समाज, परिवार अथवा व्यापार कहीं भी गुस्सा काम का नहीं होता। आदमी को दिमाग को ठंडा और शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु को गुस्सा ओपता ही नहीं, साधु को तो शांत रहना चाहिए। उपशम की साधना से गुस्से को शांत करने का प्रयास होना चाहिए।
मोक्ष प्राप्ति का दूसरा बाधक तत्त्व है-घमण्ड। बुद्धि और ऋद्धि का घमण्ड नहीं होना चाहिए। आदमी को ज्ञान और धन का घमण्ड न हो तो मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। ज्ञान है तो आदमी को मौन अथवा शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। तीसरा बाधक तत्त्व है-सहसाभाषिता और सहसाकारिता। आदमी को जो कुछ भी करना चाहिए सोच-विचार कर करना चाहिए। भावुकता में कोई निर्णय नहीं हो, मन को शांत कर उचित निर्णय करने का प्रयास करना चाहिए। चौथा बाधक तत्त्व है-अनुशासनहीनता। अनुशासनहीनता कहीं अच्छी नहीं होती। समाज, संस्थान अथवा लोकतंत्र में भी अनुशासन की परम आवश्यक होता है। किसी कार्य को व्यवस्थित चलाने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। जो अनुशासनहीन है, उसके लिए मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ है। संविभाग का विचार रखना भी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। दूसरों का हक को हड़पने से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को बाधक तत्त्वों का त्याग कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
पूर्व चतुर्मास वसई में करने वाली साध्वी प्रज्ञाश्रीजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए अपने सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री प्रकाश संचेती, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री कमलेश लोढ़ा, जैन महासंघ की ओर से श्री बसंतभाई बोहरा, मेवाड़ स्थानकवासी समाज की ओर श्री सुरेश पोखरणा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। वसई तेरापंथ समाज द्वारा स्वागत गीत का संगान किया गया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।