– सिरियारी में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा प्रथम दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन
-दीक्षा से पूर्व आचार्यश्री पहुंचे महामना भिक्षु के समाधिस्थल, किया ध्यान
– हजारों-हजारों नेत्रों अविस्मरणीय पल को अपलक निहार भव्य आयोजन के बने साक्षी
08.12.2022, गुरुवार, सिरियारी, पाली (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक, प्रथम अनुशास्ता आचार्य भिक्षु समाधिस्थल सिरियारी का परिसर। महामना भिक्षु के परंपर पट्टधर, महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन सान्निध्य और संसारी अवस्था को छोड़, मोह-माया की दुनिया का परित्याग कर, असंयमी जीवन को छोड़ संयम पथ पर अग्रसर होने तत्पर सात दीक्षार्थियों की भव्य जैन भगवती दीक्षा समारोह का आयोजन। इस भव्य आयोजन को अपने मानस में संजोने व साक्षी बनने के लिए टकटकी लगाए हजारों-हजारों नेत्र। जी हां! गुरुवार को ऐसा ही दृश्य नजर आ रहा था सिरियारी स्थित आचार्य भिक्षु समाधिस्थल परिसर में। जनता की विराट उपस्थिति से यह विशाल परिसर भी पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा सिरियारी की धरती पर प्रथम दीक्षा समारोह समायोजित हो रहा था।
त्रिदिवसीय प्रवास हेतु सिरियारी के आचार्य भिक्षु समाधिस्थल परिसर में विराजमान तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को प्रातः सूर्योदय के कुछ समय बाद ही प्रवास स्थल से अपने आराध्य, आद्य आचार्य महामना भिक्षु के समाधिस्थल पर पधारे और वहां कुछ क्षण के लिए ध्यानस्थल हुए। कुछ समय पश्चात आचार्यश्री प्रवासस्थल की ओर पधारे। ‘भिक्षु आराध्यम्’ के विशाल हॉल में भव्य दीक्षा समारोह का मुख्य कार्यक्रम आयोजित था। श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति को देखते हुए इस हॉल से बाहर भी परिसर में दोनों ओर पंडाल की व्यवस्था की गई थी। नौ बजते-बजते हॉल ही नहीं, अस्थाई पंडाल भी श्रद्धालुओं से भर गए थे। उसके भी श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी था। निर्धारित समय पर आचार्यश्री मंचासीन हुए तो श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के द्वारा भव्य दीक्षा समारोह का मंगल शुभारम्भ हुआ। तदुपरान्त दीक्षार्थी शुभम् सांखला, मुदित जैन, दक्ष नखत, मनीषा चौपड़ा, तुलसी चौपड़ा, खुशबू कोचर व सोनल पीपाड़ा ने अपने आस्थासिक्त भावों की अभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु संजना और मुमुक्षु अंकिता ने सभी दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षा संस्था के कोषाध्यक्ष श्री जसराज बुरड़ ने दीक्षार्थियों के आज्ञा पत्र का वाचन किया। सातों दीक्षार्थियों के परिजनों ने आचार्यश्री के करकमलों में आज्ञा पत्र को समर्पित किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को संबोधित करते हुए दीक्षा के महत्त्व को व्याख्यायित किया।
गुरुमुख से गूंजी आर्षवाणी: आचार्यश्री ने सर्वप्रथम उपस्थित विराट जनमेदिनी को मंगलवाणी से मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा से बड़ा यायावर तो भला कौन हो सकता है। कोई लाख-दो लाख किलोमीटर चले तो आत्मा ने अनंत-अनंत जीवन जी लिया है, किन्तु वह जीवन धन्य होता है, जिसमें संयम जीवन प्राप्त हो जाए। परम वंदनीय, परम पूज्य महामना आचार्य भिक्षु समाधिस्थल मंे आज दीक्षा समारोह समायोजित हो रहा है। जहां स्वामीजी ने अनशन ग्रहण कर महाप्रस्थान किया था। आचार्यश्री ने आगे कहा कि समुपस्थित दीक्षार्थियों के परिजनों से लिखित में आज्ञा तो प्राप्त हो चुका है, किन्तु उससे ज्यादा मान्य वर्तमान में विडियो का प्रभाव हो सकता है। आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों के परिजनों से मौखिक आज्ञा भी प्राप्त की। आचार्यश्री ने उपस्थित दीक्षार्थियों के मनोभावों का अंतिम परीक्षण किया।
आध्यात्मिक जीवन के शुभारम्भ की आध्यात्मिक प्रक्रिया
आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्य भिक्षु सहित समस्त आचार्यों संग अपने गुरुद्वय आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को वंदन कर दीक्षा देने के लिए आर्षवाणी का उच्चारण आरम्भ किया। यह दीक्षार्थियों के लिए आध्यात्मिक जीवन के शुभारम्भ की आध्यात्मिक प्रक्रिया थी। आचार्यश्री ने आर्षवाणी के उपरान्त तीन करण-तीन योग से सर्व सावद्य योगों का त्याग कराते हुए दीक्षार्थियों को साधु/साध्वी दीक्षा प्रदान की। नवदीक्षितों ने अपने आराध्य को सविधि वंदन किया। आचार्यश्री ने आर्षवाणी द्वारा उन्हें अतीत की आलोचना कराई। नवदीक्षित तीन साधुओं का केशलोच स्वयं आचार्यश्री के करकमलों से हुआ तो नवदीक्षित चार साध्वियों का केशलोच साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी द्वारा किया गया। उसी प्रकार आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने नवदीक्षित संतों को रजोहरण प्रदान किया तथा साध्वीप्रमुखाजी ने नवदीक्षित साध्वियों को रजोहरण प्रदान किया।
आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु/साध्वियों का नामकरण संस्कार करते हुए उन्हें नए संयम जीवन के नवीन नाम भी प्रदान किए। शुभम् सांखला-मुनि चिन्मयकुमारजी, मुदित जैन-मुनि मेधावीकुमारजी, दक्ष नखत-मुनि देवकुमारजी, सोनल पीपाड़ा-साध्वी स्तुतिप्रभाजी, खुशबू कोचर-साध्वी क्षितिप्रभाजी, मनीषा चौपड़ा-साध्वी मानसप्रभाजी व तुलसी चौपड़ा-साध्वी तेजसप्रभाजी नाम प्राप्त हुआ। नवदीक्षित साधु-साध्वियों को उपस्थित श्रावक समाज ने सविधि वंदन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखाजी की आज्ञा में आध्यात्मिक विकास करने को सौंपा तो मुनि चिन्मयकुमारजी को मुनि दिनेशकुमारजी को, मुनि मेधावीकुमारजी को मुनि मननकुमारजी व मुनि देवकुमारजी को मुनि कीर्तिकुमारजी की सन्निधि में अपना आध्यात्मिक विकास के लिए सौंपा। दीक्षा के कुछ समय बाद आचार्यश्री द्वारा नवदीक्षित साधु-साध्वियों को अनुशासन का ओज आहार भी प्रदान किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ से भव्य दीक्षा समारोह का समापन हुआ।