- पुनः प्रारम्भ हुआ भगवती सूत्राधारित मंगल प्रवचन का कार्यक्रम
- आचार्यश्री ने मेधावी छात्रों को सच्चाई और ईमानदारी का पढ़ाया पाठ
- साध्वीप्रमुखाजी से भी मेधावियों को मिली एकाग्रता की शिक्षा
03.09.2022, शनिवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। पर्युषण महापर्व की आराधना और तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी के महाप्रयाण दिवस के बाद शनिवार से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्राधारित मंगल प्रवचन का प्रारम्भ किया। वहीं मेधावी छात्र सम्मेलन में पहुंचे विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने सच्चाई और ईमानदारी की पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए इस जीवन के भविष्य के साथ ही आगे के अनंत भविष्य को सुन्दर बनाने के गुण बताए।
परम पूज्य आचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर में वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण पर्वाराधना, संवत्सरी, क्षमापना दिवस, आचार्य कालूगणी महाप्रयाण दिवस की सम्पन्नता के बाद शनिवार से पुनः भगवती सूत्र पर आधारित अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से श्रद्धालुओं को पावन सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि प्राचीन समय की तुंगिका नगरी जहां श्रमणोपासक रहा करते थे। एकबार वहां सन्तों का समागमन हुआ। वे संत भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के थे और उसकी संख्या लगभग 500 के आसपास थी। वे नगर के एक चैत्य में विराजमान धर्माराधना करने लगे। सभी स्थविर साधु रूप, कुल में ही नहीं, ज्ञान, तप, आचार, बहुश्रुत के ज्ञाता और जितेन्द्रिय भी थे। इसकी सूचना जब श्रमणोपासकों को हुई तो वे उनके दर्शन, प्रवचन श्रवण के लिए जाने की तैयारी करने लगे। तैयार होकर श्रमणोपासक काफी संख्या में उन साधुओं के पास पहुंचते हैं। दर्शन करते हैं तो संतों ने उनके लिए प्रवचन भी प्रारम्भ कर दिया। प्रवचन श्रवण के उपरान्त श्रमणोपासकों ने प्रश्न किया कि संयम और तप करने से क्या फल मिलता है? संतों ने उत्तर देते हुए कहा कि संयम करने से अनाश्रव होता है, अर्थात् कर्मों के आने का रास्ता बन्द हो जाता है और तप करने से पूर्वकृत कर्मों का नाश हो जाता है। संयम से नए कर्म आते नहीं, तप करने से निर्जरा होती है और पूर्वकृत कर्म नष्ट हो जाते हैं तो आत्मा हल्की हो जाती है जो मोक्ष की दिशा में गति कर सकती है। इस प्रकार उनके अनेक प्रश्नों का समाधान साधु-संतों द्वारा प्राप्त हुआ। वर्तमान समय में भी हमारे धर्मसंघ के कितने-कितने साधु-साध्वियां जगह-जगह जाते हैं और लोगों को प्रेरणा प्रदान करते हैं।
कार्यक्रम में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय मेधावी छात्र सम्मेलन के संदर्भ में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नवीन पारख, श्री पुष्प जैन पटावरी व कोषाध्यक्ष श्री मनोज नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखाजी ने मेधावियों को उद्बोधित करते हुए एकाग्रता और स्मरणशक्ति बढ़ाने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने मेधावियों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में भविष्य का बहुत महत्त्व होता है। भविष्य को अच्छा बनाने के लिए वर्तमान में कुछ विशेष करने का प्रयास होना चाहिए। मेधावी बनने के लिए बौद्धिकता, शिक्षा और ज्ञानार्जन की आवश्यकता होती है। विद्यार्थियों का लक्ष्य अच्छा अंक लाना नहीं, अच्छे ज्ञान के विकास का होना चाहिए। अच्छी विद्या प्राप्ति हो जाए तो भविष्य अच्छा हो सकता है। इस जीवन के भविष्य के साथ आगे के भी अनंत भविष्य को भी अच्छा बनाने के लिए विद्यार्थियों को सच्चाई और ईमानदारी के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। पढ़ाई हो, नौकरी हो या व्यापार हो, सच्चाई और ईमानदारी बनी रहेगी तो अनंत भविष्य भी अच्छा हो सकता है। फिर जीवन में संयम रहे, नशीले पदार्थों का सेवन न हो, आहार की शुद्धता बनी रहे। इसके साथ-साथ यदि नवकार मंत्र को प्रतिदिन बोलने का प्रयास हो तो भविष्य और अच्छा बन सकता है। कार्यक्रम में श्रीमती मनोहरी बाफना ने 17 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। बेटियों को संस्कार, प्रेरणा एवं परामर्श देने हेतु डॉ. विजयलक्ष्मी नैनावटी ने ‘श्रद्धा-समर्पण’ नामक पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की। आचार्यश्री ने पुस्तक के संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया।