वसई। वसई में साध्वी श्री प्रज्ञाश्रीजी आदि ठाणा४ की सन्निधि में महापर्व पर्युषण की सम्यक् आराधना- साधना करवाते हुए क्षमापर्व संवत्सरी के दिन भगवान महावीर के समतामय जीवन पर प्रकाश डाला। संवत्सरी पर्व की महत्ता को बताते हुए कहा- संवत्सरी पर्व त्याग की संस्कृति का पर्व है। इसी दिन मानवीय संस्कृति का उदय हुआ है। इस अवसर पर वसई, नालासोपारा,मरोल आदि क्षेत्रों के भाई बहिनों ने – पौषध उपवास कर आत्म प्रेक्षा की। भीतर में क्षमा-समता की सरिता को प्रवाहित करके आत्मानन्द की अनुभूति की। अनेक भाई-बहिनों ने आठ-नौ आदि की तपस्या भी की।
तेरापंथ युवक परिषद एवं महिला मंडल वसई के सदस्यों के द्वारा सामूहिक रुप से संवत्सरी की विशेष गीतिका का गायन किया गया तथा महिला मंडल, वसई के द्वारा नाट्य के रुप मे सोलह सतियो के जीवन पर संक्षिप्त एवं सुंदर प्रस्तुति दी गई। कन्या मंडल वसई के द्वारा 9 साध्वी प्रमुखा जी के जीवन के जीवन पर प्रस्तुति दी गई | नालासोपारा के सदस्य के द्वारा गीतिका प्रस्तुत की गई। बड़ी संख्या में तपस्वी साध्वी श्री जी के दर्शन हेतु पधारे तथा सभी तपस्वियों का तप अभिनंदन तेरापंथी सभा अध्यक्ष प्रकाश जी संचेती के द्वारा किया गया। लगभग 202 श्रावक श्राविका ने पौषध कर धर्म आराधना की।
अगले दिन क्षमापना दिवस पर साध्वी प्रज्ञाश्री जी के सान्निध्य में मैत्री दिवस की साधना कर सबने पिछले वर्ष का अवलोकन किया। किसी के साथ भी अगर कटु व्यवहार हुआ है तो उसे भूल कर क्षमा दान देकर आत्मा को निर्मल- पवित्र बनाना है। साध्वीश्री ने फरमाया क्षमा देने वाला उदार होता है। इस अवसर पर राग द्वेष की ग्रन्थि को मिटा सबके साथ में मैत्री करना ही, इस मैत्री दिवस को मनाना सार्थक है। वसई एवं नालासोपारा के सभी सभा संस्थाओं के पदाधिकारियों ने साध्वीश्री जी से एवं संपूर्ण समाज से क्षमा याचना की।
वसई मे पर्युषण एवं क्षमापना महापर्व का लगा ठाठ
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