- आचार्यश्री ने पहली बार कालू की धरा पर कालू के महाप्रयाण दिवस पर दिया मंगल प्रबोध
- साध्वीप्रमुखाजी ने आचार्य कालूगणी के व्यक्तित्व को किया व्याख्यायित
- मुख्यमुनिश्री ने गीत का किया संगान, साध्वीवृंद ने प्रस्तुत किया परिसंवाद
02.09.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। भाद्रव शुक्ला षष्ठी। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य आचार्यश्री कालूगणी का महाप्रयाण दिवस को तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक रूप में समायोजित किया। उनकी जन्मधरा पर उनके महाप्रयाण दिवस का आयोजन अपने आपमें अद्वितीय अवसर था।
प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में पधारे। एक आचार्य की जन्मभूमि पर उसी आचार्य के महाप्रयाण दिवस का आयोजन उनके परंपर पट्टधर की सन्निधि में मनाने का प्रथम अवसर था। आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तेरापंथ महिला मण्डल-छापर द्वारा गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने अष्टमाचार्य कालूगणी के व्यक्तित्व को व्याख्यायित किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने ‘श्री कालू गुरुवर को हम ध्याएं’ गीत का सुमधुर संगान किया।
अपने अष्टमाचार्य परम पूज्य कालूगणी की जन्मधरा पर उनके महाप्रयाण दिवस के समायोजन के प्रथम अवसर पर वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन शासन के साधु संस्था में आचार्य का बहुत महत्त्व है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य को तो सर्वोच्च पद प्राप्त है। इस धर्मसंघ के आद्य आचार्य भिक्षु हुए। उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा चली। उस परंपरा में हमारे धर्मसंघ के अष्टमाचार्य परम पूज्य कालूगणी हुए। आज भाद्रव शुक्ला षष्ठी परम पूज्य कालूगणी का महाप्रयाण दिवस है। यह मेरे जीवन का प्रथम अवसर है कि उनकी जन्मधरा छापर में परम पूज्य कालूगणी के विषय में बोलने का अवसर मिल रहा है। अपनी दीक्षा के उन्नचास वर्षों में छापर में कोई चतुर्मास ही नहीं हुआ। यह पहला अवसर है कि परम पूज्य कालूगणी की जन्मभूमि छापर में उनके महाप्रयाण दिवस पर कुछ बोलने का अवसर प्राप्त हो रहा है। यह भाद्रव शुक्ला षष्ठी तो परम पूज्य के महाप्रयाण का दिन तो है कि यह मेरे जीवन के साथ भी जुड़ी हुई है। आज के ही दिन मैंने अपने जीवन का महत्त्पूर्ण निर्णय किया मुझे साधुपन स्वीकार करना है। आज के ही दिन मैंने दीक्षा लेने का अंतिम संकल्प किया था। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी को तो उन्होंने अपने मुखकमल से दीक्षित किया था, किन्तु किसी रूप में मैं भी उनसे अपने आपको जुड़ा हुआ महसूस करता हूं। सरदारशहर में आज के ही दिन दोपहर में छोटी अवस्था में मैंने कालूगणी के नाम की माला फेरी और ऐसा प्रकाशमय पथ प्रशस्त हुआ कि मैंने साधु बनने का निर्णय कर लिया और आजीवन शादी न करने का भी फैसला ले लिया।
परम पूज्य कालूगणी हमारे धर्मसंघ के ऐसे आचार्य हुए हैं कि उनके द्वारा दीक्षित दो शिष्य हमारे धर्मसंघ को युगप्रधान आचार्य के रूप में प्राप्त हुए। वे मघवागणी द्वारा दीक्षित हुए थे। पूज्य कालूगणी का आचार्य मघवागणी से लगाव इतना था कि जब भी मघवागणी का नाम आता, आचार्य कालूगणी के आंखों में श्रद्धा के आंसू आ जाते थे। गुरुदेव तुलसी उनकी आचार्य परंपरा में लगभग 11 वर्ष तक साधु के रूप में रहे। आचार्य कालूगणी ने लगभग 27 वर्षों तक आचार्य के रूप में धर्मसंघ को अनुशासना प्रदान की। जीवन का अंतिम वर्ष उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं रहा। गंगापुर में उन्होंने भाद्रव शुक्ला तृतीया को मुनि तुलसी को अपना भार सौंप दिया। भाद्रव शुक्ला छठ को सायं लगभग 6 बजकर 2 मिनट पर मुनि मगनकुमारजी ने उन्हें संस्थारा पचखाया और 6.09 बजे संथारा पूर्ण हो गया और तेरापंथ का एक सूर्य अस्त हो गया। मानों शाम के समय ही आकाश के सूर्य के अस्त से कुछ मिनट पहले तेरापंथ का सूर्य अस्त हो गया। एक महापुरुष से जुड़ा हुआ यह कस्बा है। उनके समय में संस्कृत भाषा का कितना विकास हुआ था। मैं परम पूज्य आचार्य कालूगणी के प्रति अभिवंदना अर्पित करता हूं। आचार्यश्री ने कालूगणी पर आधारित एक गीत का भी संगान किया।
साध्वीवृंद द्वारा आचार्य कालूगणी के जीवन पर आधारित परिसंवाद भी प्रस्तुत किया गया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री माणकचन्द नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी।