भायंदर। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्या शासन श्री साध्वी श्री विद्यावतीजी ‘द्वितीय’ के सान्निध्य में पर्युषण पर्व के अंतर्गत जप दिवस मनाया गया । तेरापंथी सभा द्वारा मंगलाचरण करने के पश्चात् साध्वी श्री प्रियंवदाजी ने कहा जप के द्वारा आत्मशक्ति बढ़ती है। मनोबल विवेक एवं व्यवहार में कौशल प्राप्त होता है। निर्मलजी जैन ने गीत प्रस्तुत किया।
साध्वी श्री विद्यावतीजी ने कहा- कर्मों का बंधन करना आसान है पर कर्म बंधन को तोड़ना अत्यंत कठिन है। भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन करते समय साध्वीश्री जी ने उपयुक्त विचार रखे। जप विषय पर भी साध्वीश्री जी ने महत्वपूर्ण विचार रखते हुए कहा-जप चित्त की निर्मलता के लिए किया जाता है । चित्त की भूमि को उर्वर एवं सरस बनाने के लिए जप मंगलकारी है।
मुंबई तेरापंथी सभा एवं आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल जी तातेड़, कार्याध्यक्ष नवरतनजी गना पूर्वाह यक्ष नरेन्द्रजी तातेड़, मुख्य प्रबंधक मनोहरजी गोश्वरू मुंबई तेरापंथी सभ के मंत्री दीपकजी डागलिया एवं प्रवास व्यवस्था समिति के मंत्री सुरेन्द्रजी कोठारी एवं अभिषेक बाफणा कार्यक्रम में उपस्थित थे एवं संक्षेप में अपने उद्गार व्यक्त किये। मदनलालजी तातेड ने करणीय कार्यों की ओर श्रावक समाज को प्रेरित किया। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष भगवतीलालजी भंडारी ने स्वागत वक्तव्य दिया।
मुंबई तेरापंथी सभा के क्षेत्रीय संयोजक श्री भगवतीलालजी बागरेचा ने मुंबई तेरापंथी सभा के पदाधिकारियों को सभा की सदस्यता के इक्कीस नये फॉर्म भरा करके भेंट किये। एवं आभार सापन किया। वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ भायंदर श्रावक समाज की संगोष्ठी आयोजित की गई। आचार्य महाश्रमण के आगामी मुंबई चतुर्मास को लेकर सबमें अत्यधिक उत्साह एवं उल्लास है।
कार्यक्रम का संचालन विनोदजी डांगी ने किया ‘ मंत्री रूपचंदजी गोठी मुंबई तेरापंथी सभा के उपाध्यक्ष पूनमजी बरडिया, तेरापंथी सभा भायंदर के उपाध्यक्ष विजय जी बोकडिय़ा, दिनेश जी आच्छा, कोषाध्यक्ष दिलीपजी बापना,जैन विद्या प्रभारी पारस जी कच्छारा तेयुप अध्यक्ष राकेश बागरेचा, मंत्री धीरज बागरेचा,महिला मंडल से कांता जी बच्छावत, उर्मिला जी हिगड, रेखा लुणिया आदि उपस्थित थे। उपरोक्त जानकारी मीडिया प्रभारी भूपेन्द्र बागरेचा ने दी । समाचार साभार अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज भायंदर से पारस कच्छारा
भायंदरः जप से बढ़ती है चित्त की निर्मलता – साध्वी श्री विद्यावतीजी ‘द्वितीय’
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