वसई। पर्युषण का छठा दिवस जप दिवस के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत तेरापंथ युवक परिषद नालासोपारा के द्वारा मंगलाचरण से हुई , “मन को पावन करें” गीतिका का संगान किया। साध्वी प्रतीकप्रभा जी ने बताया कि भाव हमेशा संप्रेषित होते हैं, उन्होंने आचार्य श्री महाश्रमण जी के शब्दों में बताया कि भाव कैसे कैसे संप्रेषित होते हैं तथा उदाहरण देकर बताया कि आंखों के बिना शरीर का कोई मोल नहीं है।
साध्वी सरल प्रभा जी ने बताया कि कोई भी मंत्र छोटा या बड़ा नहीं होता है। जैन धर्म में नमस्कार महामंत्र का बड़ा महत्व है। हम सबको नियमित तौर पर एवं विधिपूर्वक जप करना चाहिए। आचार्य श्री फरमाते है कि साधु साध्वी हो या श्रावक-श्राविका सबको नियमित रूप से नमस्कार महामंत्र की माला फेरनी चाहिए। तीर्थंकरों का भी जप किया जाता है।
साध्वी विनयप्रभा जी ने अरिष्ठनेमी के पूर्व भव के बारे में जानकारी प्रदान की।
साध्वी प्रज्ञाश्री जी ने फरमाया कि वसई तेरापंथ भवन में नमस्कार महामंत्र के अखंड जाप निरंतर गतिमान है। अस्थिरता एवं चंचलता के कारण जप करते समय मन भटक जाता है मगर हमें स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। ओम शांति के जप से भी दुर्घटनाएं टल जाती है। साध्वी श्री जी ने महावीर स्वामी के भव के बारे में बताया जिसमें महावीर स्वामी का भव देवनन्दा की कुक्षी से त्रिशला की कुक्षी मे स्थापित हुआ। साध्वी प्रज्ञाश्री जी के मंगल पाठ के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ और कार्यक्रम के दौरान सैकड़ों धर्म प्रेमी भाइयों बहनों ने जप दिवस पर धर्माराधना की।
वसई : पर्युषण का छठा दिन जप दिवस में मनाया गया
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