मुम्बई। पर्वाधिराज का तीसरा दिन समता की सौरभ लेकर आया है। आत्मा का वास्तविक रूप है -समता। विषमता विभाव है- आत्मा का असली स्वभाव नहीं है। यह उद्गार समता साधक आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वी श्री निर्वाणश्री जी ने व्यक्त किए। उन्होंने तीर्थंकर महावीर का आचारचूला आदि आगमों के आधार पर जन्मांतर के साथ सारगर्भित विवेचन किया। इसी के साथ चतुर्दशी पर्व पर मर्यादावली का भी विश्लेषण किया।
प्रबुद्ध साध्वी श्री डॉ योगक्षेम प्रभा जी ने भगवान शांतिनाथ की प्रेरक जीवन झांकी प्रस्तुत करते हुए पूर्व भवों की रोमांचक प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा – आत्मा की चद्दर पर कषायों के जो धब्बे लग रहे हैं- पर्युषण उन्हें धोने की कला सिखाता है।
साध्वी कुंदनयशा जी ने सामायिक गीत “सामायिक समता की अनुपम साधना” की मधुर प्रस्तुति दी। साध्वी मुदित प्रभा जी ने कहा -आत्मा ही सामायिक है। जब जीव अहिंसा में स्थिर होकर समभाव की साधना करता है -वह सामायिक की आराधना कर सकता है।
कार्यक्रम का शुभारंभ जोगेश्वरी तेरापंथ महिला मंडल के मधुर संगान से हुआ। मंच संचालन सीमा सिंघवी ने कुशलता से किया। सभी साध्वीयों ने हाजिरी के पश्चात समवेत स्वरों में लेख पत्र का उच्चारण किया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन STMF अध्यक्ष विनोद जी बोहरा ने करवाया।
कांदिवली: “सामायिक आत्मा का चार्जर है”- साध्वी निर्वाण श्री
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