- भव्य स्वागत जुलूस के साथ पड़िहारावासियों ने अपने आराध्य का अभिनंदन
- 11 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री स्वागत जुलूस संग पहुंचे प्रज्ञा भवन
- शरीर, वाणी, मन व इन्द्रियों पर अनुशासन का योग है आत्मानुशासन: युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
- राज्यमंत्री, विधायक सहित अनेक गणमान्यों ने दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति
- नौ जुलाई को शांतिदूत का होगा छापर में चातुर्मासिक प्रवेश
06.07.2022, बुधवार, पड़िहारा, चूरू (राजस्थान)। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की त्रिवेणी से जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को पड़िहारा में पधारे तो पूज्यचरणों का स्पर्श पाकर पड़िहारा की धरती पावन हो गई। लगभग आठ वर्षों बाद अपने आराध्य को अपने आंगन में पाकर श्रद्धालुओं का मन मयूर नाच उठा।
बुधवार को प्रातः से पड़िहारा में मानों उत्सव-सा नजारा था। गांव की मुख्य गलियां बैनर-पोस्टर व तोरण द्वार से महाश्रमणमय नजर आ रही थी। लोहा गांव से आचार्यश्री के प्रस्थान से पूर्व ही पड़िहारा के उत्साही श्रद्धालु अपने आराध्य की अगवानी में पहुंच चुके थे। आचार्यश्री जैसे-जैसे पड़िहारा की ओर बढ़ते जा रहे थे, श्रद्धालुओं का उत्साह भी बढ़ता जा रहा था। पड़िहारा का न केवल तेरापंथ समाज, अपितु हर वर्ग और समाज के लोग शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के स्वागत-अभिनंदन को आतुर नजर आ रहे थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही पड़िहारा में पधारे तो भव्य स्वागत जुलूस के रूप में लोगों ने आचार्यश्री का हार्दिक अभिनंदन किया। श्रद्धालुओं के जयघोष से गांव की गलियां गुंजायमान हो उठीं। लोगों पर आशीषवृष्टि करते आचार्यश्री प्रवास हेतु प्रज्ञा भवन में पधारे। आचार्यश्री के स्वागत में राजस्थान के राज्यमंत्री व वक्फ बोर्ड के चेयरमेन श्री खानू खान, क्षेत्रीय विधायक श्री अभिनेष महर्षि, पड़िहारा सरपंच श्री जगजीत सिंह राठौड़ सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति भी सोत्साह सम्मिलित थे।
प्रज्ञा भवन से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित सूरजमल सीरीदेवी सुराना हेल्थ केयर सेण्टर परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने संबोधित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने पड़िहारावासियों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मानुशासन एक महत्त्वपूर्ण शब्द है। यह मूलतः दो शब्दों के संयोग से बना है आत्मा और अनुशासन। आत्मानुशासन का अर्थ है स्वयं द्वारा स्वयं की आत्मा पर अनुशासन हो। इसी प्रकार परानुशासन की बात भी आती है। जहां दूसरों का नियंत्रण हो, वह परानुशासन होता है। आत्मा शरीर में व्याप्त वह चैतन्य है, जिसे न काटा जा सकता है, न छेदा जा सकता है, न जलाया जा सकता है, न ही उसे भिगोया जा सकता है और न ही उसे सूखाया जा सकता है। आत्मा अमूर्त है। शरीर, वाणी, मन और इन्द्रियों को अनुशासित कर लिया जाए तो इसकी सम्पूर्ण निष्पत्ति हो जाती है आत्मानुशासन। शरीर की स्थिरता, वाणी का विवेक, मन पर अंकुश और इन्द्रियों का संयम करने का प्रयास होना चाहिए। बुरा बोलो मत, बुरा सुनो मत, बुरा देखो मत और बुरा करो मत। इस प्रकार आदमी स्वयं पर अनुशासन करता है तो इससे समाज और राष्ट्र भी अनुशासित हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि आज पड़िहारा आना हुआ है। यहां की जनता में खूब धार्मिक भावना बनी रहे। आचार्यश्री के स्वागत में तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री रतनलाल सुराणा, अणुविभा के महामंत्री श्री भीखमचंद सुराणा, प्रज्ञा भवन के अध्यक्ष श्री राजकुमार सुराणा, महासभा के आंचलिक प्रभारी, धनराज सुराणा, स्थानीय महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती मंजू दूगड़, सूरजमल सीरीदेवी ट्रस्ट की ओर से श्री सिद्धार्थ सुराणा, गुवाहाटी तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री बजरंग सुराणा, व्यापार मण्डल के अध्यक्ष श्री बिशनजी रुलानिया, श्री विजयराज सुराणा, श्री लक्ष्मीपत सुराणा, रतनगढ़ के विधायक श्री अभिनेष महर्षि और राजस्थान वक्फ बोर्ड के चेयरमेन श्री खानू खान से आचार्यश्री के स्वागत में अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व कन्या मण्डल, उपासिक संजू दूगड़, सूरजमल सुराणा परिवार, राणीजी परिवार व श्रीमती सीमा गिड़िया ने पृथक्-पृथक् गीत के माध्यम से आचार्यश्री अभ्यर्थना की।
बरसी गुरुकृपा तो निहाल हो उठे पड़िहारावासी
आचार्यश्री ने पड़िहारावासियों पर कृपा करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का पड़िहारा में महावीर जयंती और एक माह के लम्बे प्रवास की बात को मैं कहना चाहता हूं कि जब भी उपयुक्त समय होगा पड़िहारा में महावीर जयंती, एक महीने का प्रवास व एक दीक्षा समारोह भी करने का भाव है। आचार्यश्री के श्रीमुख से हुई इस घोषणा को सुन पड़िहारावासी निहाल हो उठे। पूरा प्रवचन पंडाल जयघोष से गूंज उठा।