नई दिल्ली: कर्नाटक में हिजाब को लेकर मचे घमासान के बीच मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने मुसलमानों से रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर प्रगतिशील विचारों को अपनाने की अपील की है। संगठन ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से ज्यादा महत्व शिक्षा हासिल करना है। संगठन ने कहा कि भारत में मुस्लिमों में निरक्षरता की दर सबसे ज्यादा 43 प्रतिशत है। समुदाय में बेरोजगारी की दर भी बहुत ज्यादा है।
एमआरएम के संयोजक और प्रवक्ता शाहिद सईद ने कहा, ‘मुसलमानों को सोचना चाहिए कि उनमें निरक्षरता दर ज्यादा क्यों है। उन्हें प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। मुसलमानों को यह समझना होगा कि उन्हें हिजाब से ज्यादा किताब की जरूरत है।’उन्होंने कहा कि मुस्लिम लड़कियां, युवा और महिलाएं प्रगतिशील हैं और पढ़ना और जीवन में आगे बढ़ना चाहती हैं। परंतु, कट्टरपंथी और तथाकथित धर्म के ठेकेदार कुछ नेता उन्हें आगे बढ़ने नहीं देना चाहते और रूढ़िवादिता और कट्टरता की बेड़ियों में जकड़े रखना चाहते हैं। सईद ने कहा कि भारत में मुसलमानों में मात्र 2.75 प्रतिशत ही ग्रेजुएट या उसे उच्च शिक्षा हासिल करने वाले हैं। इनमें से महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 36.65 प्रतिशत है।
मुसलमानों में बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर सबसे ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कों से ज्यादा मुस्लिम लड़कियां बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं। उन्होंने का कि भारत में मुसलमानों की आबादी 20 करोड़ है। ऐसे में उन्हें सोचना चाहिए कि मुस्लिम ग्रेजुएट छात्रों की संख्या इतनी कम क्यों है। चाहें सरकारी क्षेत्र हो निजी क्षेत्र मुस्लिमों के रोजगार की दर बहुत कम है। सईद ने कहा, ‘ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के प्रति किसी तरह के भेदभाव की वजह से नहीं है। जब किसी समुदाय में पढ़े लिखे युवाओं की संख्या कम और पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या अधिक होगी तो वह समुदाय पीछे रहेगा ही।’
मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को आजादी दिलाई एमआरएम के संयोजक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तीन तलाक खत्म कर और उसे अपराध बनाकर मुस्लिम महिलाओं को सदियों से चली आ रही कुप्रथा और पीड़ा से मुक्ति दिलाई है। यह मुस्लिम महिलाओं के स्वाभिमान और गरिमा का कानून है। इस कानून के बाद मुस्लिम महिलाओं के हालात में बदलाव आया है। उन्हें राहत मिली है। उन्हें सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिला है।