करुणा कोठारी।।
252वर्ष पूर्व सैद्धांतिक मतभेद के कारण मुनि भीखण ने सत्य की खोज में अपने कदमों को एक नई राह पर गतिमान किया और उनके साथ कई कदम चल पड़े। आचार्य भिक्षु के रूप में उन्होंने कई वर्षों तक राह में आने वाले गतिरोध का सामना किया। शिथिलाचार को त्याग कर सत्य और आगम की गहराई को आम जन के लिए खोल दिया। आचार्य भिक्षु ने अनुभव किया कि विकास का सबसे बड़ा आधार है अनुशासन। उन्होंने अनुशासन के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन करने के बाद कुछ मर्यादाओं का निर्माण किया। आचार्य भिक्षु ने 1032 में लिखित रूप में सर्वप्रथम मर्यादा बनाई। वह दिन मार्गशीर्ष कृष्णा सप्तमी का था। उसके पश्चात धीरे-धीरे कुछ और मर्यादा बनी। स्वामीजी द्वारा निर्मित अंतिम मर्यादा 1859 माघ शुक्ला सप्तमी थी। अत: उसी दिन को संविधान की पूर्ति का दिन समझा गया।
स्वामीजी ने धर्मसंघ की एकता और पवित्रता बनाए रखने के लिए कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में जो विधि निषेध की सीमा स्थापित की, उसे उन्होंने मर्यादा नाम से अभिहित किया। आचार्य जीतमलजी ने उसी अर्थ गौरव पूर्ण शब्द के आधार पर इस पर्व का मर्यादा महोत्सव नामकरण किया। (तेरापंथ इतिहास भाग -1) मर्यादा का आधार आ. भिक्षु की दूरदर्शिता एवं परिपक्व सोच थी। जो तब भी उतनी ही प्रासंगिक थी जितनी आज है।
मर्यादा महोत्सव का सर्वप्रथम प्रारम्भ तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी ने 1921 माघ शुक्ल सप्तमी को बालोतरा में किया। वैसे तो उससे पूर्व भी माघ माह में साधु-साध्वियां आचार्य की निश्रा में एकत्रित होंगे। मर्यादाओं का वाचन होता पर विधिवत प्रारम्भ 1921 में ही हुआ। 148 वर्षों में अनवरत प्रतिवर्ष यह महोत्सव मनाया जा रहा है।
इसका आधार आचार्य भिक्षु द्वारा रचित मर्यादा आचार्य जीतमल की दूरदर्शिता और चतुर्विध धर्म संघ की जागरूकता है। इस माह में आचार्य के दर्शनों के लिए कई साधु-साध्वी एकत्रित होते ही जिनकी सारणा वारना आचार्य द्वारा की जाती है। चातुर्मास काल में साधु साध्वियों द्वारा किए गये कार्य, लेखन, प्रगति,आपसी व्यवहार की जानकारी लेते हैं। तत्पश्चात आचार्य द्वारा कृत कार्यों का उपालम्य या सम्मान जिनके भी अधिकारी होते हैं।
महोत्सव के आसपास एक दिन बड़ी हाजरी का वाचन होता है, जिसमें दीक्षा वय के अनुरूप पूरा साधू-साध्वी वर्ग खड़ा होकर लेखपत्र का वाचन करते हैं। सप्तमी के दिन मध्यान में आचार्य के सान्निध्य में मर्यादा महोत्सव मनाया जाता है। जिसमें आचार्य तेरापंथ की शासन प्रणाली का जनता को दिग्दर्शन कराते हैं, साथ ही आ. भिक्षु द्वारा लिखित लेखपत्र जनता को दिखाते हैं और साधु-साध्वियों के चातुर्मास की घोषणा करते हैं।
लाखों श्रावक-श्राविकाओं वाले इस धर्मसंघ में हजारों की उपस्थिति के बीच साधु-साध्वी के चातुर्मास की घोषणा होती है और जिसका चातुर्मास जहां फरमाया जाता है, वहां के लिए तत्पर न कोई सवाल न जिज्ञासा। जहां एक घर के लोग वैचारिक अलग रूप से अलग होते हैं, वहां इतने सारे लोग, साधु-साध्वी आचार्य की मुख से निकली बात को पूर्ण करने को तत्पर। असम्भव लगता अवश्य है पर है सत्य। आज जहां हर क्षेत्र में फूट, वैमनस्य, घृणा, अहंकार और भ्रष्टाचार का बोलबाला है, एक आचार, एक विचार और एक आचार्य वाले तेरापंथ धर्मसंघ से परिवार, समाज और राष्ट्र को अनुशासन, विनम्रता स्वस्थ एवं कुशल नेतृत्व की कला सीखनी चाहिए। तेरापंथ धर्मसंघ लोकतंत्र का सबसे प्रबल और सशक्त उदाहरण है, जिससे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए और विकास की राह में अपना योगदान देना चाहिए।
– करुणा कोठारी
तेरापंथ का प्राण : मर्यादा महोत्सव
![](https://surabhisaloni.co.in/wp-content/uploads/2021/07/Mahashraman-04-07-1.jpg)
Leave a comment
Leave a comment