पाकिस्तान में नेताओं की चुप्पी आजकल कुछ ज़्यादा ही अर्थपूर्ण हो चली हैं।नहीं-नहीं, ये कोई मौन व्रत या मेडिटेशन का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि “मौन = जान बचाओ” जैसी कोई नई रणनीति लगती हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद, जिन्ना के वारिस चुप हैं, सेना को कुछ समझ नहीं आ रहा और आवाम मोबाइल बंद कर चुपचाप व्हाट्सएप की स्टोरी देख रही हैं– “कब आएगा भारत?” अब सवाल ये नहीं कि भारत हमला करेगा या नहीं। सवाल ये हैं कि क्या पाकिस्तान खुद कहेगा– “भाई, एक बार आ ही जाओ… यहाँ तो सब उल्टा-पुल्टा हो रहा हैं। कम से कम रोटी, कपड़ा, मकान और संविधान तो मिल जाएगा।”
सेना क्या करे जब फौज ही सरकार हो?
पाकिस्तान में लोकतंत्र वैसे ही हैं, जैसे बिरयानी में तेज़पत्ता– दिखता हैं पर कोई खाता नहीं। प्रधानमंत्री वहाँ वो शख्स होता हैं, जिसे सेना प्रेस कॉन्फ्रेंस में “हमारे सुझाव पर नियुक्त किया गया” कहकर introduce करती हैं। और फिर वो बेचारा प्रेसिडेंशियल चाय पीते-पीते इस्तीफे की चिट्ठी लिखने लगता हैं।
अब जनता पूछ रही हैं– हमारे पास कौन सी च्वाइस हैं?
पाकिस्तानी जनता के पास दो ही विकल्प हैं– 1.सेना से डरकर भूखे मरे 2.भारत से उम्मीद लगाकर लोकतंत्र से ज़िंदा रहे! और भारत? वो तो बस खड़ा हैं, शांति के संदेश वाला झंडा लेकर। पर अब सवाल ये हैं– क्या एशिया ज़ोन की आर्थिक और राजनीतिक मजबूती के लिए भारत को पाकिस्तान को टेकओवर कर लेना चाहिए? क्यों न ऐसा हो कि जिस तरह से भारत में तमिलनाडु से लेकर कश्मीर और असम तक सभी लोग एक संविधान के तहत जीते हैं, उसी तरह कराची और लाहौर वाले भी लोकतंत्र के under आ जाएं?
क्योंकि जब आप कोई सामान ऑनलाइन मंगाते हैं और उसमें कोई खराबी निकलती है तो आप Return/Replace करते हैं– तो क्या पाकिस्तान में सिस्टम का Return/Replace नहीं होना चाहिए?
अगर पाकिस्तान भारत में Merge हो गया तो–
•IMF की लाइन से पाकिस्तान को छुट्टी मिल जाएगी
•फौजियों की दुकान बंद हो जाएगी
•और हाँ, आम पाकिस्तानी पहली बार “बिजली 24 घंटे” और “RTI” का स्वाद चखेगा!
क्या आप चाहते हैं कि पाकिस्तान भी एक दिन वोटिंग लाइन में लगे और अपने मनपसंद नेता को चुने– बिना डर के, बिना फौजी इशारे के?
अगर हाँ, तो शायद वक्त आ गया हैं कि भारत को “पाकिस्तान पर हमला” नहीं, बल्कि “पाकिस्तान को लोकतंत्र देने का प्रस्ताव” देना चाहिए।
हाँ, थोड़ा ह्यूमन राइट्स का ड्रामा होगा, कुछ वामपंथी हंगामा करेंगे– पर फिर भी, कम से कम एशिया में शांति और प्रगति की नई शुरुआत तो होगी।
और वैसे भी, जब पाकिस्तान में लोकतंत्र की मांग भारत से हो रही हो– तो क्या ये देशद्रोह कहलाएगा या राष्ट्रप्रेम?
संवादः क्या पाकिस्तान अब भारत से लोकतंत्र उधार लेना चाहता है?

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