- पूज्यप्रवर ने किया दस प्रकार की इच्छाओं का वर्णन
- नवरात्रि में प्रारम्भ हुआ आध्यात्मिक अनुष्ठान
07 अक्टूबर 2021, गुरुवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें पट्टधर शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का भीलवाड़ा चातुर्मास अब उत्तरार्ध की ओर बढ़ रहा है। धर्म-ध्यान, प्रवचन, निरन्तर चल रही आध्यात्मिक प्रवित्तियों में प्रवित्त भीलवाड़ा वासियों अध्यात्ममय समय ऐसे बीत रहा है कि पता ही नहीं चला कि अब चतुर्मास संपन्नता को डेढ़ माह भी शेष नहीं रहा है। प्रतिदिन देशभर से श्रद्धालुओं का आवागमन आचार्यश्री के दर्शनार्थ हेतु जारी है। नवरात्रि के प्रारम्भ पर आज आचार्यप्रवर के सान्निध्य में अष्ट दिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ हुआ। गुरूदेव ने विविध मंत्र-स्तोत्रों का धर्मसभा में पाठ करवाया।
जैनागम आधारित प्रवचन माला में आचार्य प्रवर ने कहा की- ठाणं में दस प्रकार की अनुशंसाओं व इच्छाओं का उल्लेख मिलता है। इह-लोक में चक्रवर्ती राजा आदि बनने की इच्छा, पर-लोक में उच्चपदों, स्वर्ग प्राप्ति व इंद्र बनने की आशंसा, इह-लोक तथा परलोक दोनों में उच्च-पद की आशंसा, दीर्घ-जीवन जीने की इच्छा, मान-सम्मान प्राप्ति की इच्छा, काम की इच्छा, अच्छे शब्द, रूप दृश्य देखने की इच्छा, भोग – सुखदायी गंध व स्पर्श की इच्छा, कामना, अधिक लाभ व लोभ की इच्छा व उसके माध्यम से कीर्ति पाने की अनुशंसा, पूजनीयता की आशंसा, सत्कार, सम्मान की इच्छा व आशंसा रखना। ये दस प्रकार की इच्छाएं है। आशंसा व इच्छा का अतिरेक आध्यात्म साधना का एक प्रतिकूल तत्व है।
गुरूदेव ने आगे कहा- व्यक्ति को इच्छाओं का अल्पीकरण कर सहज जीवन जीना चाहिए। लालसाएं सीमित हो तो व्यक्ति सुखी रह सकता है। कई साधक तपस्या करते है। तपस्या भी मात्र निर्जरा के लिए होनी चाहिए। साधना का लक्ष्य स्वर्ग या भोग प्राप्ति का न होकर सिर्फ निर्जरा होना चाहिए। लालसा, कामना दुःख का हेतु होते है, अतः निष्काम साधना ही सर्वोतम साधना है। व्यक्ति को पदार्थों का नहीं, परम का ध्यान रखना चाहिए। इस अवसर पर मुनि प्रसन्न कुमार ने अपने विचार व्यक्त किये।