- पूज्यप्रवर ने दी जीवन को साधनामय बनाने की प्रेरणा
06 अक्टूबर 2021, बुधवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। सत्यम् शिवम् सुंदरम् की अपूर्व समन्विति, अहिंसा यात्रा प्रणेता पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी की धर्म देशना से जन-जन नित्य लाभान्वित हो रहा है। चातुर्मास स्थल तेरापंथ नगर अध्यात्म पुरुष के आभामंडल से आलोकित हो कर हर हृदय में अपार प्रसन्नता का संचार कर रहा है।
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण जी ने ठाणं आगम आधारित प्रवचन में भावी जीवन के कल्याणकारी कारणों के बारे में बताते हुए कहा कि ये ऐसे स्थान है जिससे भविष्य में हित सनहित हो जाता है। अनिदानता- भौतिक समृद्धि के लिए साधना का विनिमय न करना, दृष्टि संपन्नता, सम्यक दृष्टि की आराधना करना, योगविहिता – चित समाधि हेतु तप आदि करना, शांतिक क्षमता – समर्थ होते हुए क्षमा शीलता रखना, जितेंद्रीयता – इंद्रिय संयम रखना, ऋजुता – सहज सरल भाव रखना, अपारस्वस्थता – ज्ञान,चरित्र के आचार में शिथिलता न हो, सुश्रामण्य – सु श्रमणता रहे। प्रवचन वत्सलता – आगम और जिन शासन के प्रति प्रगाढ़ अनुराग, प्रवचन उदभावनता – आगम और जिन शासन की प्रभावना करना। इस प्रकार के दस व्यवहारों से भविष्य में भी कल्याणकारी स्थिति रहती है। वर्तमान हमारा भाग्य विद्याता है। जैसा वर्तमान में कर्मबंध होंगे वैसे ही उनका फल व्यक्ति को भोगना पड़ेगा। हमारा भावी जीवन अच्छा हो कल्याणकारी हो इसके लिए उपरोक्त दस चीजें अनुसरणीय है।
आचार्यवर ने आगे फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ के सभी आचार्यों के ग्रंथो से अनुमान लगा सकते है कि उन्होंने कितना आगम अनुशीलन, मंथन किया होगा। आगमों के साथ सभी का गहरा संबंध रहा है। आगम के संदर्भ में आचार्यों ने अथक श्रम, समय का नियोजन किया है। व्यक्ति को अवस्था, उम्र अनुसार अपने जीवन को साधना और धर्म आराधना में लगाना चाहिए। आध्यात्मिक प्रवृतियों में संलगन होकर वर्तमान जीवन के साथ भावी जीवन अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति को कार्य की सफलता में मंजिल पर पहुंचने के लिए धैर्य रखना चाहिए। व्यक्ति का लक्ष्य उपयोगी हो तो उसकी प्राप्ति के लिए रूकावटे आने पर भी निर्भीकता और धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। इस अवसर पर मुनि श्री पारस कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए।