- पूज्य प्रवर ने किया केवली समुद्घात का वर्णन
- पूज्य प्रवर द्वारा जैनम् जयतु शासनम् नवीन उपक्रम की घोषणा
30 जुलाई 2021, शुक्रवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान। अहिंसा प्रणेता ,महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी का चातुर्मास सानन्द आदित्य विहार, तेरापंथ नगर में प्रवर्धमान है। आचार्यश्री के दर्शनार्थ प्रतिदिन जैन एवं जैनेतर लोगों का भी निरंतर आवागमन हो रहा है। शांतिदूत के वर्चुअल प्रवचनों से न केवल भीलवाड़ा अपितु सम्पूर्ण भारत के श्रद्धालुओं को धर्मश्रवण का लाभ मिल रहा है। जैन धर्म के प्रभावक आचार्य संत शिरोमणि आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा गत सायं कल्याण परिषद की मीटिंग में जैन शासन हेतु अति महत्वपूर्ण घोषणा की गई। जैन एकता एवं जैन शासन कि प्रभावना हेतु नई पहल करते हुए आचार्यश्री ने “जैनम् जयतु शासनम्” नवीन उपक्रम की घोषणा की। इसके तहत विभिन्न उपक्रमों द्वारा जैन शासन हित गतिविधियां संचालित होगी।
मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने बताया कि हमारा जीवन दो तत्वों का योग है- शरीर और आत्मा। शरीर के भीतर ही आत्मा रहती है। एक विशेष स्थिति ऐसी भी आती है जब आत्म प्रदेश शरीर से बाहर निकल जाते है। जैन दर्शन में इसको समुदघात कहते है, जिसके सात प्रकार होते है। उनमें से एक केवली समुदघात है जो आठ समय का होता है। प्रत्येक प्राणी की आत्मा में लोकाकाश जितने असंख्य प्रदेश होते है।अनंतकाल तक जो एक समान अवगाहन लिए रहते है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोक, जीवास्तिकाय के प्रदेश एक समान रूप से फैले होते है। एक जीव के प्रदेश कम या ज्यादा फैले हो सकते है। आत्मा को जितना स्थान मिले शरीर अनुसार वह उसमें समाविष्ट हो जाती है और उसी के अनुरूप आत्म प्रदेश फेल जाते है। फैलाव और संकोच आत्मा का सिद्धांत है।
आचार्यवर ने आगे फरमाया कि समुदघात इसलिए होता है क्योंकि केवली के चार घाती कर्म शेष रहते है। ये आत्मा के मूल गुणों की घात नहीं करते है। परन्तु जब तक अघाती कर्म रहते है तब तक मोक्ष नही मिलता है। केवली के वेदनीय, नाम ,गौत्र कर्म का कालमान से आयुष्य कर्म का कालमान कम रह जाता है तब चारों में सामंजस्य बिठाने के लिए केवली समुदघात करते है। जो आठ समय में पूरा होता है। जैन दर्शन की ये थ्योरी हमारे जीवन में भी लागू हो सकती कि जब काम ज्यादा हो समय कम हो तो किस तरह समय मैनेजमेंट के द्वारा सामंजस्य बिठाकर अपने कार्य को अच्छे से सम्पन्न कर सकते है। इस अवसर पर जैन विश्व भारती द्वारा पूज्य प्रवर के समक्ष आचार्य महाप्रज्ञ जी की नवप्रकाशित पुस्तक “क्षमा की पराकाष्ठा” का विमोचन किया गया। मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी ने पुस्तक के बारे में जानकारी दी।
साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने वक्तव्य प्रदान किया। अभातेयुप अध्यक्ष श्री संदीप कोठारी ने अपने विचार व्यक्त किए एवं अभातेयुप के पदाधिकारियों संग संघीय समाचारों का सशक्त माध्यम ‘तेरापंथ टाइम्स’ के न्यूज पोर्टल का आचार्यश्री के समक्ष लॉन्च किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य भी इस दौरान कार्यक्रम में संभागी बने। तपस्या के क्रम में सुश्री पायल रांका और श्रीमती इंदिरा मारू ने नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।