मुंबई:मराठा आरक्षण पर न्यायालय के आदेश के अध्ययन के लिए समिति गठित होगी
मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में सियासी भूचाल जारी है। महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय के लिए आरक्षण को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति का गठन करेगी। ये समिति 15 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। महाराष्ट्र के मंत्री अशोक चव्हाण ने शनिवार को इस बारे में बताया।
शीर्ष अदालत ने मराठा को आरक्षण प्रदान करने के महाराष्ट्र के कानून को चार मई को रद्द कर दिया था। मराठा आरक्षण पर राज्य सरकार की उप समिति के प्रमुख चव्हाण ने संवाददाताओं से कहा कि समिति गहराई से सुप्रीम कोर्ट के 500 से ज्यादा पन्नों में दिए गए आदेश का अध्ययन करेगी और 15 दिन में एक रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद राज्य सरकार रिव्यू पिटीशन दाखिल करने पर फैसला करेगी।
चव्हाण ने कहा कि मुख्य सचिव सीताराम कुंते प्रत्येक विभाग में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) की लंबित भर्ती प्रक्रिया पर गौर करेंगे। चव्हाण ने कहा कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखेंगे और अगर राज्य के पास समुदाय को आरक्षण देने का अधिकार नहीं है तो केंद्र को आरक्षण प्रदान करने के लिए कहेंगे। बहरहाल, राज्य के गृह मंत्री दिलीप वाल्से पाटिल ने मराठा समुदाय से संयम बरतने की अपील करते हुए उनसे ऐसा कुछ नहीं करने को कहा जिससे कोरोना वायरस महामारी के बीच पुलिस पर और दबाव बढ़े।
क्या है मामला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को दिए गए अपने एक फैसले में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण रद्द किया था और कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती. अदालत ने ये भी कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले को वृहद पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. साथ ही अदालत ने सरकारी नौकरियों और दाखिले में मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र के कानून को खारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया था। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और एस जस्टिस रवींद्र भट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले पर फैसला सुनाया।