कहते है न की जब कोई फल पक जाता है, तब उसे तोड़ने के लिए सभी लपक पड़ते हैं, उसी तरह आज राजनीति में अंबेडकर चहेते हो गए हैं, लेकिन अंबेडकर दिखने में चाहे जितने आकर्षक हों, अपनाने में उतने ही कठिन भी हैं। वर्तमान राजनीतिक दल इस बात को जानते हैं इसीलिए वे 14 अप्रैल और 6 दिसंबर पर उनका नाम तो लेते हैं लेकिन उनकी वैचारिक तेजस्विता से डरते हैं। बाबा साहब जी का विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कल था , बाबा साहब कहते थे मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है, मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है ,वे इतिहास नहीं बना सकते जो इतिहास को भूल जाते है । देश में आज देखे तो अधिकतर नेता दलितों , पिछड़ों को वोट बैंक तो मानते हैं पर उनकी दशा सुधारने के लिए कुछ खास नहीं कर रहे है ,और आखिर करेंगे भी कैसे ? एक गरीब दलित , पिछड़ों की व्यथा भी तो वही समझ सकता है जिसने गरीबी को पास से देखा हो, लेकिन वो तो भला हो उन नेताओं का जिन्होंने देश की आजादी से पहले और बाद में देश के दलितों , पिछड़ों और असहायों को कुछ विशेष अधिकार दे आज उन्हें सर उठाकर जीने का मौका दिए है ,वरना आज के नेता जो हर चीज लूटने पर तुले हैं वह इन्हें भी अब तक नोच डालते देश के इतिहास में जब भी दलितों , पिछड़ों , वंचितों के कल्याण की बात आती है तो सर्वप्रथम नाम बाबा साहेब अंबेडकर का जेहन में आता है” समाजसेवी क्रांतिकारी , राष्ट्र प्रेमी, भारत मां के सच्चे सपूत, लड़ते रहे समाज से समाप्त करने के लिए भेदभाव और छुआछूत आओ आज करते हम सभी मिलकर नमन, आप थे इस धरती मां के सच्चे सपूत ” साथियों हर साल 14 अप्रैल को संविधान निर्माता और भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर जयंती हम सभी मानते है। इस महापुरुष का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में हुआ था, इनके पिता रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई मुरबादकर थे, बाबा साहेब बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, ये बहुत ही विषम परिस्थति में भी संघर्ष कर न केवल उच्च शिक्षा ग्रहण किए , बल्कि समाज को भी शिक्षित किए साथियों बाबा अंबेडकर के सामाजिक चिंतन में आज के परिदृश्य में भी अस्पृश्यों, दलितों तथा शोषित वर्गों के उत्थान के लिए काफी संभावना झलकती है, बाबा साहब इनके उत्थान के माध्यम से एक ऐसा आदर्श समाज स्थापित करना चाहते थे, जिसमें समानता, स्वतंत्रता तथा भ्रातृत्व के तत्व समाज के आधारभूत सिद्धांत हों, अगर हम इनके विचारों को अमल में लायें तो समाज की ज्यादातर समस्याएँ जैसे वर्ण, जाति, लिंग, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक सभी पहलुओं पर पैनी नजर रखते हुए बदलाव लाई जा सकती है, जिससे विश्व गुरु बनने के लिए एक नया मॉडल व डिजाइन भी तैयार किया जा सकता है।
जैसा कि सभी जानते ही है कि डॉ. बाबा भीम राव अम्बेडकर समानता को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे,उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए,प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर समाज इस दायित्व का निर्वहन नहीं कर सके तो उसे बदल देना चाहिए, वे मानते थे कि समाज में यह बदलाव सहज नहीं होता है, इसके लिए कई पद्धतियों को अपनाना पड़ता है। आज जब विश्व एक तरफ आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ विश्व में असमानता की घटनाएँ भी देखने को मिल रही हैं। इसमें कोई दो राय नही है कि असमानता प्राकृतिक है, जिसके चलते व्यक्ति रंग, रूप, लम्बाई तथा बुद्धिमता आदि में एक-दूसरे से भिन्न होता है। लेकिन समस्या मानव द्वारा बनायी गई असमानता से है, जिसके तहत एक वर्ग, रंग व जाति का व्यक्ति अपने आप को अन्य से श्रेष्ठ समझ संसाधनों पर अपना अधिकार जमाता है। यूएनओ द्वारा इस संदर्भ में प्रति वर्ष नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है, जो आज भी समाज में व्याप्त असमानता को प्रकट करता है। भारत में इस स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 14 से 18 में समानता का अधिकार का प्रावधान करते हुए समान अवसरों की बात कही गई है। यह समानता सभी को समान अवसर उपलब्ध करा सकें, इसके लिए शोषित, दबे-कुचलों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। इस प्रकार अम्बेडकर के समानता के विचार न सिर्फ उन्हें भारत के संदर्भ में, बल्कि विश्व के संदर्भ में भी प्रासंगिक बनाते हैं।
वंचितों, गरीबों, दलितों, पिछड़ों की व्यथा भी तो वही समझ सकता है जिसने गरीबी को पास से देखा हो
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