ग्रीन टी वजन घटाने में मददगार है। टाइप-2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों से बचाव में भी इसे खासा कारगर पाया गया है। अब ब्रिटेन स्थित सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी के हालिया अध्ययन में यह कैंसर के इलाज में भी असरदार मिली है।
ऊर्जा केंद्र पर करती है वार
शोधकर्ताओं के मुताबिक ग्रीन टी कैंसर कोशिकाओं के ‘माइटोकॉन्ड्रिया’ (सूत्रकणिका) पर हमला करती है। ‘माइटोकॉन्ड्रिया’ किसी भी कोशिका का ऊर्जा केंद्र कहलाता है। इसके नष्ट होने से कैंसर कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा नहीं मिल पाती और वे धीरे-धीरे दम तोड़ने लगती हैं।
छीन लेती है प्रोटीन की खुराक
मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर माइकल लिसांती की मानें तो ग्रीन टी ‘राइबोजोम’ को भी कमजोर बनाती है। आरएनए और उससे जुड़े प्रोटीन से लैस ‘राइबोजोम’ कोशिकाओं को जिंदा रखने के लिए बेहद जरूरी है। यह उन प्रोटीन का उत्पादन करता है, जिनके दम पर कोशिकाएं फलती-फूलती हैं।
दवा की जगह लेने का दमखम
लिसांती को उम्मीद है कि ग्रीन टी भविष्य में कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली ‘रेपामाइसिन’ की जगह ले सकती है। यह दवा माइटोकॉन्ड्रिया को निष्क्रिय कर कैंसर कोशिकाओं को जिंदा रहने और अपनी संख्या बढ़ाने से रोकती है। अध्ययन के नतीजे ‘जर्नल एजिंग’ के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
फायदेमंद
-सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दवा, इलाज में कुछ दवाओं जितनी कारगर
-कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के ऊर्जा केंद्र यानी ‘माइटोकॉन्ड्रिया’ को निष्क्रिय कर देती है
-विकास में मददगार प्रोटीन पैदा करने वाले ‘राइबोजोम’ को भी कमजोर बनाती है
‘माचा ग्रीन टी’ ज्यादा असरदार-
-अध्ययन में जापान में बेहद लोकप्रिय ‘माचा ग्रीन टी’ को कैंसर के इलाज में ज्यादा प्रभावी करार दिया गया है
-चाय की ताजा हरी पत्तियों से होती है तैयार, पाउडर के रूप में मिलती है, मोटापे से निजात दिलाने में कारगर
ऐसे होती है तैयार
-चाय के पौधों को धूप से दूर रखा जाता है, ताकि ‘एल-थियानाइन’ सहित अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाए।
-ताजा पत्तियां तोड़कर उन्हें भांप से पकाया जाता है, हवा में सुखाने के बाद बारीक पाउडर के रूप में पीसा जाता है।