भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की मिसाल थे। काशी विद्यापीठ में बीए की डिग्री को शास्त्री कहते थे। इसी डिग्री को उन्होंने अपना टाइटिल बना लिया जो आज भी उनके परिवार की पहचान है।
जब देश भुखमरी की समस्या से गुजर रहा था, उस समय शास्त्री जी ने अपनी सैलरी लेना बंद कर दिया। अपने घर पर काम करने आने वाली बाई को भी काम पर आने से मना कर दिया और घर का सारा काम खुद करने लगे। उन्हें सादगी पसंद थी। प्रधानमंत्री बनने से पहले वह विदेश मंत्री, गृहमंत्री और रेल मंत्री जैसे पदों पर रहे। जब वह रेल मंत्री थे तो यात्रियों की समस्या जानने के लिए जनरल बोगी में चले गए। वहां की दिक्कतों को देखा और जनरल बोगियों में पहली बार पंखा लगवाने का निर्णय लिया। शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे तब एक रेल दुर्घटना हो गई। इस पर शास्त्री जी ने तुरंत मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। शास्त्री जी ने युद्ध के समय देशवासियों से अपील की कि अन्न संकट से उबरने के लिए सभी देशवासी सप्ताह में एक दिन का व्रत रखें। उनकी अपील पर देशवासियों ने सोमवार को व्रत रखना शुरू कर दिया था।
शास्त्री जी जब स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल में थे तब घर पर उनकी बीमार पुत्री की हालत काफी गंभीर थी। उनकी पैरोल भी स्वीकृत हो गई, लेकिन शास्त्री जी ने यह लिखकर देने से मना कर दिया कि वह जेल से बाहर निकलकर आंदोलन में कोई काम नहीं करेंगे। अंत में मजिस्ट्रेट को 15 दिनों के लिए उन्हें बिना शर्त छोड़ना पड़ा। वह घर पहुंचे लेकिन उनकी पुत्री का निधन हो चुका था। शास्त्री जी ने कहा, जिस काम के लिए मैं आया था, वह पूरा हो गया है। अब मुझे वापस जेल जाना चाहिए और उसी दिन वह जेल चले गए।
शास्त्री जी की अपील पर पूरा देश रखने लगा था सप्ताह में एक दिन का व्रत
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