संजय रोकड़े।।
जिस तरह से देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ते जा रहा है उसको देखते हुए तो यही लगता है कि लॉकड़ाउन एक बार फिर बढ़ेगा। गर लॉकड़ाउन को बढ़ाने से बिमारी पर अंकुश लगाया जा सकता है तो अवश्य बढऩा चाहिए। लेकिन इस बीच एक चिंता बढ़ रही है कि क्या इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन सब दिक्कतों पर अंकुश लगाने का कदम उठा लिया है, जो लॉकड़ाउन बढ़ाने के बाद पैदा होगी।
इसमें कोई दो राय नही है कि 21 दिन के इस लॉकडाउन में गरीब-गुरबा और बेसहारा असहाय, मजलूमों को छोडकर आम मध्यमवर्गीय को जरूरी सामान मिलने में कोई दिक्कत नही आई। कुछ अपवाद को छोड़ दे तो। वैसे इस दौरान जरूरी सामान पर कोई रोक भी नहीं थी। लोगों को सामना भी मिल ही जा रहा था।
लेकिन चिंता अब है। अगर लॉकडाउन बढ़ा तो आने वाले दिनों में आटा, दाल, पैक्ड फूड जैसी जरूरी चीजों की कहीं किल्लत तो न हो जाए। ये चिंता इसलिए भी जताई जा रही है कि दुकानदारों यानी रीटेलर्स का कहना है कि उनके पास फिलहाल चार से पांच दिन या ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह का ही स्टॉक है। और कुछ जरूरी चीजें तो अभी से खत्म हो चुकी है। वहीं इन रिटेलर्स को सामान सप्लाई करने वाले डिस्ट्रिब्यूटर्स का कहना है कि उनके पास भी अब केवल एक सप्ताह का ही स्टॉक बचा है। ध्यान रहे कि ट्रांसपोर्ट की दिक्कत के चलते कई जगह डिस्ट्रिब्यूटर्स, रिटेलर्स को सामान भी नहीं पहुंचा पा रहे है।
दरअसल इस तरह की किल्लत का सबसे बड़ा कारण यही है कि अब किसी भी प्रकार का माल किसानों के जरिए मंडियों तक नही पहुंच रहा है। सब्जियां, फसलें और तमाम खाद्यान्न सामाग्री इस समय खेतों में ही पड़ी है। सब्जियां सड़ रही है तो फसलें खराब हो रही है।
सनद रहे कि यही सामाग्री खेतों से मंडिय़ों व मंडिय़ों से फैक्ट्रियों तक पहुंचती है। फिर वहीं से सामान बनकर पैक होकर होलसेलर के पास पहुंचती है। डिस्ट्रिब्यूटर से फिर रिटेलर के पास जाती है। इसे कहते हैं सप्लाई चेन। लेकिन सच तो ये है कि अभी कई फैक्ट्रियों में उत्पादन रुका हुआ है। इसका सीधा असर आगे चलकर ग्राहकों यानी हम- आप सब पर पड़ेगा।
पर ये जो चिंता जाहिर की जा रही है क्या उसका खयाल हमारे पीएम को नही रहा होगा।। बेशक रहा होगा लेकिन बावजूद इसके व्यापारियों की अपनी चिंता है। वे चिंता जताते हैं कि अगर लॉक डाउन दो या तीन हफ्ते बढ़ता है तो अब किसी भी हाल में जरूरी सामान की दिक्कत बढऩा ही है। इसके पीछे उनका एक वाजिब तर्क भी है। वो यह कि एफएमसीजी में डिस्ट्रिब्यूटर से लेकर रीटेलर तक एक पूरी सप्लाई चेन होती है। इसमें आमतौर पर तीन-चार हफ्ते का गैप होता है, जिससे उनके पास कम से कम तीन-चार हफ्ते का स्टॉक रहता है। इसलिए तीन-चार हफ्ते के अब तक के लॉकडाउन में कोई दिक्कत नहीं आई। पर इसके आगे चुनौतियां अवश्यंभावी है।
यह भी जान ले कि उत्पादन की निरंतरता बनाए रखने के लिए किसी भी फूड फैक्ट्री की लाइन लगातार चलानी पड़ती है, क्योंकि फैक्ट्री में हाइजीन, स्टैंडर्ड सब रखना है। उसके साथ ही उसे माइक्रो बायोलॉजी भी मैनटेन करना होता है। लेकिन अगर लाइन स्टार्ट और स्टॉप पर चलती है तो फैक्ट्री की कॉस्ट बहुत बढ़ जाती है। बार-बार साफ करके चलाना और फिर उसे सेनेटाइज करना बड़ा मुश्किल होता है। स्टार्ट- स्टॉप की वजह से बीच-बीच में प्रोडक्ट खराब होने का खतरा भी बना रहता है। गर खाने के सामान के संबंध में बात करें तो फूड फैक्ट्रियां लगातार नहीं चलने से बहुत नुकसान झेल रही हैं। और वह इस तरह का नुकसान कब तक झेलेगी।
इन सबके साथ ही इस समय लेबर की भी खासी कमी है। लेबर की कमी के कारण फूड ग्रेन की ज्यादातर पैकेजिंग इंडस्ट्री बंद हैं। इसमें दो राय नही है कि अगर मिल में आटा बना है तो उसे पैक भी करना है। अगर चावल तैयार है, लेकिन उसे पैक करने के लिए थैला नहीं मिलेगा तो कैसे काम चलेगा। गेहूं तैयार है और गेहूं का बोरा नहीं मिलेगा तो कैसे काम रूक जाएगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्टेशन भी एक बड़ा मसला बन कर सामने खड़ा है। इसकी भी इस समय खासी परेशानी है। किराए ज्यादा हो गए है। जैसे मध्य प्रदेश से आने वाला चना पहले कभी 150 रुपए प्रति क्विंंटल में दिल्ली तक पहुंच जाता था अब वही चना प्रति क्विंंटल ढाई सौ रुपए में पहुंच रहा है।
बता दे कि आवश्यक सामाग्री के साथ ही अब दिक्कत एफएमसीजी यानी फास्ट मूविंग कन्जूमर गुड्स के मामले में खासी देखने को मिलेगी। एफएमसीजी को आमतौर पर कन्जूमर पैकेज्ड गुड्स भी कहा जाता है। इसमें साबुन, डिटर्जेंट, शैम्पू, टूथपेस्ट, शेविंग प्रोडक्ट, जूते की पॉलिश, पैकेज्ड खाना, स्किन केयर जैसा सामान शामिल हैं। जब फैक्ट्रियों से डिस्ट्रिब्यूटर तक माल नहीं पहुंचेगा तो आगे की राह तो मुश्किलों से भरी ही होगी न।
इस संबंध में दिल्ली फूड ग्रेन एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने भी अपनी चिंता जाहिर कर दी है। वे कहते है कि फिलहाल तो दिल्ली और देश के अनेक ईलाकों में आटा, दाल, चावल, तेल जैसे जरूरी सामान का अभाव नही है लेकिन आने वाले दिनों में इसकी खासी किल्लत होगी। इससे तभी बचा जा सकता है गर फूड ग्रेन की ट्रांसपोर्टेशन का फ्लो बना रहे। जरूरी सामानों की चेन कमजोर होगी तो सामान लोगों तक कहां से पहुंचेगा?
बिमारी के डऱ से तमाम मजदूर अपने गांव चले गए है। ट्रक ड्राइवर भी नहीं हैं। हालाकि मालिकों को सरकार से जरूरी सामानों की फैक्ट्री चलाने की अनुमति तो मिली हुई है, फैक्ट्री चलाना भी चाहते है और अपने वर्कर को बुला भी रहे है। लेकिन सच तो यह है कि फैक्ट्री मालिकों के पास मजदूर ही नही है। प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट गए हैं तो परमानेंट वर्कर इस समय काम करना नही चाहता है। केवल 10 या 15 फीसदी बचे मजदूरों के सहारे फैक्ट्री नही चलाई जा सकती है।
अब व्यापारियों के शीर्ष संगठन कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने भी साफ कह दिया है कि देश में जरूरी सामानों की आपूर्ति को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आएगी। हालाकि इस चुनौती का वक्त रहते समाना किया जा सके इसके लिए कैट, ऑल इंडियन ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन से चर्चा कर रही है। लेकिन लॉकड़ाउन के कारण अभी पूरे देश में ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से ऑपरेट नहीं किया जा सकता है। सरकार ने भी ट्रकों से सिर्फ जरूरी सामानों के ट्रांसपोर्टेशन ही अनुमति दी थी। जब तक ट्रक मालिकों की बैसिक परेशानी को नही समझा जाएगा तब तक वह भी ट्रकों को संचालन नही कर पाएगें। जैसे अगर ट्रक को किसी एक जगह से जरूरी सामान उठाना है तो वो वहां तक खाली तो जाएगा नही। इस नुकसान के बारे में सोचकर कई ट्रकों के पहियें रुक गए है। अब ट्रक ड्राइवर भी कम हैं, इसलिए बहुत कम ट्रक चल पा रहे है।
असल में इस समय सप्लाई चेन से जुड़े सभी वर्गों के बीच का आपसी समन्वय भी टूट चुका है। अब इसको पुन: सुचारू करना एक बड़ा मुश्किल काम है। इस समय थोक व्यापारियों- वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, निर्माताओं या उत्पादकों, ट्रांसपोर्टरों, कूरियर सेवाओं, आवश्यक वस्तुओं के लिए जरूरी कच्चे माल निर्माताओं या उत्पादकों समेत पैकेजिंग उत्पादों के उत्पादकों के बीच तालमेल की जरूरत अधिक है लेकिन यह संभव होते नही दिखाई दे रही है।
इन सब दिक्कतों के चलते तमाम व्यापारिक संगठनों ने अपनी बात केंद्रीय गृह और वाणिज्य मंत्री के सामने रखने की बात भी कही है। इसके साथ ही सबने एक सुर में अपील की है कि इस चेन को बनाए रखने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया जाए। जिसमें सभी के प्रतिनिधि हों। वो रोज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मिले, जिससे सप्लाई चेन में आई किसी भी परेशानी से तुरंत निपटा जा सके। हालाकि खुश करने वाली बात यह है कि सरकार ने जरूरी समान वाली फैक्टियों के मालिकों से बातचीत करना शुरू कर दिया है। इस बात की जानकारी पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स में रिटेल कमेटी के माध्यम से सामने आई है।
बताते है कि सरकार और फैक्ट्री मालिकों के बीच इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि मालिक, वर्करों को खाना और सही हेल्थकेयर दें। साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। मजदूरों के रहने और आने- जाने का भी उचित प्रबंध करे। मजदूरों को ज्यादा दूर तक ट्रेवल नहीं करना पड़े, इस पर ध्यान दिया जाए। बैठकें और विचार-विमर्श तो चल रहे है लेकिन इस समय असल दिक्कत यह है कि अब आवश्यक सामाग्री का स्टॉक करीब-करीब एक सप्ताह का ही बचा है। इसलिए जरूरी है कि फैक्ट्रियों को चलाने के लिए बिना कोई समय जाया किए आवश्यक कदम उठाए जाएं।