कलाकार- सैफ अली खान, अलाया एफ़, तब्बू, कुबरा सैथ, चंकी पांडेय, फरीदा जलाल, कुमुद मिश्रा, कमलेश गिल आदि।
निर्माता- जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख, सैफ अली खान, जय सेवकर।
बैनर- पूजा इंटटेन्मेंट, ब्लैक नाईट फिल्मस, नॉर्थन लाइट फिल्मस
निर्देशक- नितिन कक्कड़
कहानी – भारतीय संस्कृति में परिवार का महत्व सबसे ऊंचा होता है, लेकिन आधुनिकता की लहर में संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव इस कदर हावी है कि रिस्तों का महत्व ही नहीं रह गया। आपसी आत्मीयता खत्म होने से लोग रिस्तों से डर रहे है। अपनी धुन में रहना और दूसरों की जिम्मेदारी से दूर रहना आज के स्वार्थी इंसान को खूब भाता है। ऐसे ही अभी के समयानुसार की फ़िल्म जवानी जानेमन की कहानी है।
यह लंदन के ऐसे व्यक्ति जसविंदर सिंह उर्फ जैस (सैफ अली खान) की कहानी है जो अपनी जिंदगी मौजमस्ती और अय्याशी में काटना पसंद करता है। अपनी कमाई भी पब और लड़कियों में उड़ता है। अपने दोस्त राजेन्दर सिंह उर्फ रॉकी (चंकी पांडे) के पब में उसका रोज का आना जाना है। रॉकी भी जैस की तरह है। जैस की उम्र ढल रही है बालों को रंगाना पड़ रहा है पर युवा बने रहने की ललक है कि खत्म नहीं हो रही। वह युवा बने रहने के लिए पार्लर जाता है जहां उसकी दोस्ती रिया (कुबरा सैथ) से होती है। जैस और उसका भाई डिम्पी सिंह (कुमुद मिश्रा) साथ में रियल इस्टेट में ब्रोकर का काम करते हैं। आज़ाद परिंदे की तरह जैस की जिंदगी खुशहाल थी जिसमें ना चिंता, ना जिम्मेदारी, ना भविष्य का खयाल। अचानक पब में टिया (अलाया एफ) से उनकी मुलाकात होती है। टिया भी जैस से दोस्ती करती है। जैस खुशियों के बादल में उड़ता है पर टिया की सच्चाई जान उसकी जिंदगी में तूफान आ जाता है। टिया उसे अपनी माँ अनन्या (तब्बू) का अतीत बताती है और कहती है कि शायद वह उसकी बेटी है इसलिए वह डीएनए टेस्ट करवा लें। जैस डीएनए करवाता है तो उसे और झटका लगता कि टिया उसी की बेटी है और प्रेग्नेंट भी है। जैस की जिंदगी में हलचल पैदा हो जाती है उसे समझ नहीं आता वह क्या करे और टिया भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। फिर धीरे धीरे जैस का व्यवहार बदलता जाता है। अंत में वह पारिवारिक जीवन चुनता है जिसमें सभी की सुख दुख समाहित रहती है।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष – निर्देशक नितिन कक्कड़ ने अपनी पिछली फिल्मों से बेहतर काम किया है। फ़िल्म का लोकेशन बहुत खूबसूरत है। सभी मानवीय भावनाओं को बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है। फ़िल्म में पुराने ‘ओले ओले’ गीत को रीमिक्स कर पुनः सैफ पर फिल्माया गया है जो धीमा व प्रभावहीन है लेकिन ‘दिल लुटिया’ सुनने लायक है साथ ही ‘बाबुल’ भी बेहद भावुक गीत है।
अभिनय – नई अदाकारा अलाया एफ ने अपनी पहली ही फ़िल्म में बेहतरीन काम किया है। बेहद संजीदा और भावनाओं से भरी भूमिका को अपने अभिनय से अलाया एफ ने जीवंत बना दिया है। सैफ़ अली खान का अभिनय भी उम्दा है। उन्हें ऐसे रोल में देखकर ‘ये दिल्लगी, हम तुम, सलाम नमस्ते’ जैसी फिल्मों की याद ताज़ा हो जाती है। चंकी पांडेय पर आखरी पास्ता का हैंगओवर है। कुमुद मिश्रा, फरीदा जलाल, कमलेश गिल का सहयोग बढ़िया है। कुबरा सैथ ने अपने किरदार को बढ़िया निभाई है। तब्बू का किरदार हास्य पैदा करता है।
फ़िल्म देखने का कारण – इंसान कितनी भी आधुनिकता का आडम्बर करे पर परिवार से अलग वह ताउम्र नहीं गुजर सकता। जवानी तो कट जाएगी पर बुढ़ापा अपनों के सहारे के बिना काटा नहीं जा सकता। अकेलापन मज़ा नहीं सजा हो जाती है। इसी कड़ी को फ़िल्म में मनोरंजक ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है। साथ ही पिता पुत्री के प्रेम का मार्मिक चित्रण है। अन्य फिल्मों से हटकर आधुनिक समय की सच्चाई को दिखाया गया है। यह सभी वर्गों के दर्शकों के लिए है।
- गायत्री साहू