मुंबई। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वाधान में स्व से शिखर तक की कार्यशाला की तीसरी कड़ी चार भावना का विवेचन साध्वी श्री निर्वाण श्री जी आदि ठाना सात के सानिध्य में हर्षित भाव के साथ सानंद संपन्न हुई।
साध्वी श्री निर्वाण श्री जी ने फरमाया चार भावनाएं स्व को निखारने का आलंबन है ।जब आलंबन सुदृढ़ होता है तो मंजिल स्वत: ही प्राप्त होती है। धर्म ध्यान की चार अनुप्रेक्षा है अनित्य भावना ,अशरण भावना, संसार भावना तथा एकत्व भावना। साध्वी श्री जी ने बारह भावना के दोहों को याद करने की प्रेरणा देते हुए कहां:- अनित्य भावना का मतलब है इस संसार में जो कुछ भी दृश्य है वह अनित्य है नित्य कुछ भी नहीं है। अनित्य भावना को पुष्ट करते हुए भरत चक्रवर्ती का उदाहरण दिया।
अशरण की भावना को समझाते हुए साध्वी श्री डॉ योग क्षेम प्रभा जी ने फरमाया – व्यक्ति सोचता है पैसा ,परिवार ,समाज मेरे लिए शरण है परंतु कोई किसी के शरण में नहीं है अगर शरण होती तो अनाथी मुनि धर्म की शरण में नहीं जाते। शरण धर्म के सिवा किसी की भी नहीं हो सकती ।नमस्कार महामंत्र की शरण से कैसे शासन देव, देविया रक्षा करते हैं यह एक सुंदर कथानक के द्वारा समझाया। जो धर्म की शरण लेता है वह कभी आचरण नहीं रहता हमारे लिए अरिहंत सिद्ध साधु केवली भाषित धर्म ही शरण है।
संसार भावना का विश्लेषण करते हुए साध्वी श्री जी ने फरमाया- यह संसार एक अभिनय की तरह है ।इसमें कभी व्यक्ति सुखी होता है तो कभी दुखी होता है। संसार में एक जैसा व्यक्ति हमेशा कभी नहीं रहता ।यह सब संसार भवभ्रमण का परिणाम है।
एकत्व भावना का विश्लेषण करते हुए कहा मैं अकेला हूं यह एकत्व की भावना है। मैं अकेला आया हूं मुझे अकेला जाना है। नमी राज ऋषि के कथानक द्वारा एक तत्व की भावना का सुंदर विश्लेषण किया साध्वी श्री जी ने फरमाया – यह चार ऐसी अनुप्रेक्षा है जो जीवन में उजाला भर देती है। एक अनुप्रेक्षा को अगर हम समझ लेते हैं तो बाकी सभी अनुप्रेक्षा ए सभी भावनाएं अपने आप आपके भीतर प्रवेश कर देती है। इसी कड़ी में साध्वी श्री जी ने अनित्य की अनुप्रेक्षा का प्रयोग करवाया। कार्यशाला की शुरुआत ‘आओ बहनों जागो बहनों ‘के संगण के साथ महिला मंडल द्वारा किया गया। मंगल पाठ के द्वारा साध्वी श्री जी ने कार्यशाला का समापन किया।
औरंगाबाद में ‘स्व से शिखर’ कार्यशाला संपन्न
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