18-12-2019, बुधवार, अज्जीहल्ली , कर्नाटक। आदमी को करने में विवेक और होने में संतोष रखना चाहिए। अर्थार्जन के साधन में विवेक रखना होता है और व्यापार में लाभ-नुकसान जो हो, उसमें संतोष रखना चाहिए। व्यक्ति को हर परिस्थिति में समता-शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। विधानसभा, लोकसभा आदि के चुनाव में जीतने के लिए कोई पूरा प्रयास करता है, किन्तु उसके बाद हार-जीत जो भी हो, उसमें समता का भाव रखना चाहिए–ये उद्गार बुधवार को अज्जीहल्ली के में आयोजित कार्यक्रम में अहिंसा यात्रा प्रणेता महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि आदमी किसी चीज के अभाव को देखने की अपेक्षा जो प्राप्त है, उसका सदुपयोग करने का प्रयत्न करे, यह काम्य है। सभी व्यक्तियों की क्षमता एक समान हो, यह जरूरी नहीं, लेकिन जिसकी जो क्षमता हो, उसका अच्छा आध्यात्मिक उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित अज्जीहल्ली के ग्राम्यजनों ने अहिंसा यात्रा के विषय में कन्नड़ भाषा में जानकारी दी गई तो उन्होंने संकल्पत्रयी स्वीकार की। मुनि धीरजकुमारजी ने पूज्यप्रवर की प्रेरणा आदि का कन्नड़ भाषा में अनुवाद किया।
पूर्व अध्यक्ष श्री आर.एम.रवि ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
इससे पूर्व आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने अहिंसा यात्रा के दौरान येदनहल्ली से अज्जीहल्ली तक लगभग सत्रह किलोमीटर की पदयात्रा की। सुपारी, नारियल, नीलगिरि, खजूर, केलों, मकई, कालीमिर्च आदि के अनगिन वृक्षों, पौधों, लताओं और हल्की ठण्डी हवा के बीच भी सूर्य तीखी धूप बरसा रहा था। पहाड़ों के बीच बना मार्ग आरोह-अवरोह लिए हुए था, किन्तु आचार्यश्री का चित्त आरोहों-अवरोहों से सर्वथामुक्त अर्थात् समत्वलीन था।
मार्ग में सिद्धपुर, भावीन कट्टे और चुन्नीगेरे के ग्रामीणों ने आचार्यश्री को वन्दन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। बड़ी संख्या में अज्जीहल्ली के ग्रामीणों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। हालांकि ग्रामीण लोग हिन्दी और अंग्रेजी भाषा से अनजान थे, किन्तु आचार्यश्री के प्रभावक व्यक्तित्व का आकर्षण भाषायी भेद के बावजूद ग्रामीणों को खींच ले आया।
सायंकाल आचार्यश्री अज्जीहल्ली से चार किलोमीटर की पदयात्रा कर चन्नगिरि में पहुंचे। चन्नगिरि के जैन एवं जैनेतर लोगों ने पलक-पांवड़े बिछाकर आचार्यश्री का सोल्लास स्वागत किया। लोगों के उत्फुल्ल चहरों पर उनका आंतरिक उल्लास मुखरित बना हुआ था। रात्रिकालीन कार्यक्रम में चन्नगिरि के लोगों ने आचार्यप्रवर के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने भी बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों को पावन प्रेरणा देते हुए अहिंसा यात्रा के संकल्प ग्रहण करवाए।
करने में विवेक और होने में संतोष रखो : आचार्यश्री महाश्रमण
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