अवधान विद्या भारतीय संस्कृति की महान देन: अवधानकार मुनीश्री जिनेश कुमार जी
सफाले। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा 2 के सान्निध्य में विद्या का विलक्षण अवधान कार्यक्रम का भव्य आयोजन जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा द्वारा जैन स्थानक परिसर में किया गया। अवधान कार मुनिश्री जिनेश कुमार विभिन्न प्रयोग किये। जिसे देख कर सारी जनता विस्मित रह गई। गणित से जुड़ी जटिल सवालों का जवाब केलकुलेटर या कंप्यूटर से भी अधिक तीव्र गति से केवल ज्ञान ध्यान और स्मृति के सहारे क्या दिया जा सकता है? इसका जवाब है हां पर यहं संभव है अवधान से। जब इस विद्या को मुनिश्री जी ने साक्षात किया तो सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी। अदभुत आश्चर्यजनक। प्रश्न कर्ता ने उन्हें जब ईस्वी सन महीना तारीख बताई तो उत्तर में उसे तत्काल वार मुनि श्री ने बता दिया। एक प्रश्नकर्ता मैं 16 खानों का कोष्टक सर्वतोभद्र यंत्र भरने के लिए 70 अंक दिए। अवधान कार ने 16 खानों को सर्वतो भद्र यंत्र शीघ्र ही भर दिया, जिसमें सभी और से गिनती करने पर वही संख्या आई जो प्रश्नकर्ता ने दी थी। अनेक जिज्ञासु ने घड़ी में सोचा गया समय पूछा तो श्री मुनि ने गणित के फार्मूले के आधार पर तत्काल वह समय बता दिया। कार्यक्रम में उपस्थित लोग सब अभिभूत हो दांतो तले उंगली दबाने लगे। मुनिश्री जी ने बताया माला का मणका किस व्यक्ति के कोन से हाथ, कौन सी उंगली, कौन सा पोर, कौन से मणके पर हैl यही नहीं हजारों की संख्या में दिया गया गुना बिना कागज पेन के सहारे केवल संख्या सुनकर छिपाए अंक को बताकर उन्होंने सबको हैरत में डाल दिया और जब कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के दौरान सुनने गए श्लोक, 24 अंकों की लंबी संख्या और हिंदी, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, बंगाली भाषा के 5 शब्द ज्यों के त्यों सुनाएं तो पूरा परिसर ॐ अर्हम की ध्वनि से गूंज उठा। उन्होंने घनमूल निष्कासन भी किया।
अवधान प्रयोग के पश्चात उद्बोधन देते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा जीवन की सफलता का मुख्य आधार स्मृति विकास हमारा मस्तिष्क चैतन्य शक्ति का अक्षय भंडार हे। यह सुपर कंप्यूटर है लेकिन व्यक्ति ने अपना दिमाग कंप्यूटर के हाथों में गिरवी रख दिया है। स्मृति क्षीणता की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। स्मृति विकास के लिए जरूरी है ध्यान की साधना। साधना से विकसित हुई विद्या है अवधान। अवधान विद्या भारती संस्कृति के महान देन है। आगे कहां अवधान का अर्थ है ज्ञात अज्ञात किसी भी परिचित बात या वस्तु को एकाग्र मन से स्मृति कक्ष में धारण करना। अवधान ध्यान सिद्धि के पश्चात व्यक्ति को श्रवण ज्ञान से संस्कृत के श्लोक एवं लंबी संख्या याद करने की क्षमता प्राप्त हो जाती हैं। अवधान जादुई चमत्कार या प्रदर्शन नहीं है मात्र साधना का जप, ध्यान, सकारात्मक चिंतन, एकाग्रता, विनम्रता, सात्विक आहार, संहिष्णुता के माध्यम से स्मरण शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। ओम नमो णाणस्स का ज्ञान केंद्र पर पीले रंग का ध्यान, महाप्राण ध्वनि आदि के प्रयोग समिति विकास के लिए महत्वपूर्ण है ।आज सफाले में अवधान कार्यक्रम हुआ है जो सभी के लिए शुभ संदेश बने ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि सरपंच आमोद जाधव, जतिन सर, रामदास जाधव ,JTN परिवार से समकित पारेख, विकास धाकड़, स्थानकवासी संघ के अध्यक्ष शांतिलालजी दोषी, रमेश तलेसरा, विरार के अध्यक्ष तेजराज जी हिरण व वसई सभा अध्यक्ष मोहनलाल गुंदेचा, बोईसर सभा अध्यक्ष दिलीप राठौड़, मनोर सभा अध्यक्ष भैरुलाल खिमेसरा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल मंगलाचरण व स्वागत गीत से हुआ। स्वागत भाषण सभा अध्यक्ष भेरूलाल मंडोत ने दिया । आभार ज्ञापन ममता परमार ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री परमानंदजी ने किया।
कार्यक्रम में सफाला, पालघर, बोईसर, मनोर, केलवा रोड ,मीरा रोड, नायगांव, विरार, वसई, नालासोपारा आदि क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे । कार्यक्रम को सफल बनाने में अध्यक्ष भेरुलाल जी मंडोत, मंत्री तरुण लोढ़ा, महेन्द्र परमार, राकेश चौरडिया, नरेश मांडोत, महेंद्र बाफना, अनीश परमार, कांतिलाल बाफना एवं सभी धर्म प्रेमियों का सराहनीय सहयोग एवं उपस्थिति रही। यह जानकारी दिनेश राठौड़ ने दी।
स्मृति विद्या एकाग्रता का विलक्षण प्रयोग अवधान कार्यक्रम संपन्न
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