आदिल राशिद।।
वैश्विक सुरक्षा के लिहाज से अबू बकर अल-बगदादी का मारा जाना काफी अहमियत रखता है। बर्बर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट, यानी आईएस का यह सरगना दुनिया का नंबर एक वांछित आतंकवादी था और अपनी मनमर्जी खलीफा बन बैठा था। ऐसे में, यह समझा जा सकता है कि जब ‘खलीफा’ का अंत हो जाए और उसने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा न की हो (हालांकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक अब्दुल्ला करदाश को नया सरगना बनाया गया है), तो उसके कथित जेहाद को कितना बड़ा झटका लगेगा। बगदादी की मौत से खासतौर से सीरिया और इराक में गंभीर असर पड़ेगा, जहां उसके मुख्यालय रहे हैं। शनिवार की रात अमेरिकी सेना ने आईएस को जबर्दस्त चोट पहुंचाई है।
हालांकि बगदादी के आखिरी वक्त के विश्लेषण से आईएस की कई रणनीतियों के संकेत मिलते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के मुताबिक, उसे उत्तर पश्चिमी सीरियाई प्रांत इदलिब के बारिशा कस्बे में मार गिराया गया है। यह इलाका अल-कायदा के सहायक संगठन हुर्रास अल-दीन का गढ़ माना जाता है। आईएस का जन्म बेशक अल-कायदा की कोख से ही हुआ है, लेकिन बाद में दोनों संगठनों के आपसी मतभेद इतने गहरे हो गए थे कि दोनों एक-दूसरे को निशाना बनाने लगे थे। बगदादी का इदलिब आना यह बताता है कि आईएस अब इतना कमजोर हो चुका है कि वह अपने दुश्मन से हाथ मिलाने को आतुर है। अपने पुराने संबंधों को वह फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहा है।
अच्छी बात है कि पूरी दुनिया में दहशत फैलाने में जुटी वैश्विक जेहादी तंजीमों को जो देश अब तक मदद करते आए हैं, वे भी इनके खिलाफ हो गए हैं। पश्चिम एशियाई देशों की सेनाएं अब इन संगठनों के खिलाफ सक्रिय हैं। सऊदी अरब की फौज यमन में, तो तुर्की की सेना सीरिया में हमलावर हैं। ईरान भी जंग में उतर चुका है। इसका अर्थ है कि पश्चिम एशिया के ये देश अब अपनी फौजों को सीधे-सीधे इन गुटों के खिलाफ उतार रहे हैं। इससे जाहिर तौर पर ये ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ कमजोर पड़ने लगे हैं। आलम यह है कि श्रीलंका में बीते अप्रैल में जब सीरियल बम धमाके किए गए थे, तो आईएस ने दो दिनों के बाद हमले की जिम्मेदारी ली और ऐसा कोई प्रत्यक्ष वीडियो प्रमाण भी तुरंत जारी नहीं किया, जो अपने दावे के समर्थन में वह आमतौर पर पेश करता रहा है। स्पष्ट है, सीरिया में इसका नियंत्रण तंत्र बुरी तरह तबाह हो चुका है और बगदादी की मौत से इसकी सांगठनिक हैसियत भी खत्म होती दिख रही है।
तो क्या बगदादी के अंत के साथ आईएस का भी खात्मा हो गया है? फिलहाल इसका सटीक जवाब नहीं दिया जा सकता। नई परिस्थिति में संभव है कि इससे जुड़े संगठन अपनी तरफ से कुछ करने की कोशिश करें। अभी उनका मनोबल भले ही कमजोर हुआ हो, लेकिन अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए वे किसी आतंकी घटना को अंजाम दे सकते हैं। दरअसल, आतंकवाद को लेकर ठोस रूप से कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इसका चरित्र अनुमानों से परे माना जाता है। तब भी मौजूदा परिस्थिति यही बता रही है कि वैश्विक आतंकी संगठनों पर प्रहार बढ़ा है और ये जमातें आपसी मतभेदों को खत्म कर किसी भी तरह से एक होने की कोशिश कर रही हैं। इसलिए सिर्फ आईएस पर ही चोट करने से वैश्विक आतंकवाद का अंत नहीं हो सकता।
इन संगठनों का एक और चरित्र गौर करने लायक है। जब कभी सीरिया में इनको कोई बड़ा आघात लगता है, तो दूसरे मुल्कों में इनकी गतिविधियां तेज हो जाती हैं। ऐसा करने का मकसद अपने समर्थकों को अपनी मौजूदगी दिखाना होता है, ताकि यह संदेश दिया जाए कि संगठन या विचारधारा को कोई खास झटका नहीं लगा है। इसीलिए बगदादी की मौत के बाद संभव है कि दुनिया भर में जेहादी गतिविधियां तेज हो जाएं। भारत पर भी समान रूप से खतरा है, जिसके लिए नई दिल्ली को चौकस रहना होगा। इसका अंदेशा इसलिए भी है, क्योंकि इसी साल मार्च में जब आईएस सीरिया के बगूस में अपनी पकड़ खो रहा था, तब उसके एक महीने के बाद उसने श्रीलंका में सिलसिलेवार बम धमाके किए थे। इस बार भी बगदादी की मौत के बाद वह कुछ करने की योजना बना सकता है, जिससे तमाम मुल्कों को सतर्क व सावधान रहने की जरूरत है।
जरूरी यह भी है कि वैश्विक आतंकी संगठनों को अलग-अलग बांटकर निशाना बनाने की बजाय एक मानकर उन पर हमला बोला जाए। आईएस, अल-कायदा या किसी भी अन्य जेहादी समूह को अब एक मानना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि ये तमाम तंजीमें एकजुट होने लगी हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है कि ये सभी इकट्ठा हो जाएं। इनमें एकता बढ़ने की यह आशंका मानव समाज के हित में नहीं है।
एक बात और। बगदादी की मौत के बाद आईएस भी अल-कायदा की राह (ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद) पर बढ़ता दिख रहा है। बेशक इसके नए सरगना की घोषणा कर दी गई है और यह बताया जा रहा है कि परोक्ष रूप से अब्दुल्ला करदाश ही संगठन चलाता रहा है, फिर भी इसके पास ऐसा कोई अड्डा या तंत्र नहीं बचा है, जिससे यह देश-दुनिया में अपनी सक्रियता दिखा सके। इसलिए संभव है कि भविष्य में हम किसी नए गुट का नाम सुनें, जो इसी संगठन की कोख से निकला हो।
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