नई दिल्ली: भीमा-कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ दर्ज एफआईआर निरस्त करने संबंधी उनकी याचिका की सुनवाई से जस्टिस बी.आर. गवई ने भी खुद को अलग कर लिया। संबंधित याचिका मंगलवार को जस्टिस एन.वी. रमन, जस्टिस बी.आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी। इस दौरान जस्टिस गवई ने सुनवाई से खुद को अलग करने की घोषणा की। इसके बाद याचिका को जस्टिस गोगोई के पास फिर से भेजा गया ताकि नई पीठ का गठन किया जा सके।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी इस याचिका की सुनवाई से हट गए थे। दरअसल, भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गौतम ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। कोर्ट ने गौतम के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया था।
ऑर्डर देने से पहले हमारा पक्ष सुना जाए: महाराष्ट्र सरकार
चीफ जस्टिस का कहना था कि इस मामले को उस बेंच को भेजा जाए, जिसमें मैं पार्टी न रहूं। इसके बाद यह मामला जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच को भेजा गया। महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में याचिका दायर कर कहा था कि कोई भी ऑर्डर देने से पहले हमारा पक्ष भी सुना जाए।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था- मामले की पूरी जांच की जरूरत
13 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2017 में हुए भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नवलखा की एफआईआर रद्द करने की अपील खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि प्रथम दृष्ट्या इस मामले में वास्तविकता दिखाई देती है। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले की गंभीरता को समझते हुए हमें ऐसा लगता है कि इसमें गहनता से और पूरी जांच की जरूरत है।
दिसंबर 2017 में हुई थी भीमा-कोरेगांव में हिंसा
नवलखा के खिलाफ पुणे पुलिस ने जनवरी 2018 में एफआईआर दर्ज की थी। नवलखा पर माओवादियों से संपर्क होने का भी आरोप लगा था। एफआईआर के मुताबिक, नवलखा और अन्य आरोपी सरकार उलटने के लिए काम कर रहे थे। 31 दिसंबर 2017 को भीमा-कोरेगांव में एल्गर परिषद आयोजित की गई थी। इसके अगले ही दिन हिंसा शुरू हो गई थी।
1 जनवरी को भीमा-कोरेगांव में दो गुटों के बीच दंगे हुए थे। जिसमें एक युवक को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसमें आगजनी, पथराव जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया था।
भीमा-कोरेगांव हिंसा:चीफ जस्टिस गोगोई के बाद अब जस्टिस गवई गौतम नवलखा की याचिका की सुनवाई से हटे
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