वसई। दक्षिण सिंहनी गुरुणी अजितकुमारी जी म सा की सुशिष्या साध्वी कुशल वक्ता विश्ववंदना ने अपने दैनिक व्याख्यान के दौरान कहा कि सामयिक महावीर की समस्त साधना का केंद्र बिंदु है। सामयिक ही वह धरातल है जहां महावीर की साधना का महल खड़ा है। सामयिक शब्द की उत्पत्ति समय से हुई है ।समय का अर्थ होता है सिद्धांत, समता या आत्मा। आम मनुष्य का जीवन जहां ममता पर टिका रहता है वही महावीर समता की प्रेरणा देते हैं ।ममता और समता दोनों ही सहायक बन जाते हैं, पर विषमता तो तब पैदा होती है जब दोनों में अंतर्द्वंद छिड़ता है ।यदि ममता ,ममता रहे और समता ,समता रहे यानी दोनों अपने-अपने स्थान पर कायम रहे तो विषमता का जन्म ही ना हो पाएगा।
साध्वी ने कहा जागने या सोने में, पाने या खोने में ,लाभ या हानि में ,मिट्टी या हीरे में, संयोग या वियोग में ,जहां प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति अपने चित् में ,समता, शांति, और सद्भाव बनाए रखता है उसे ही भगवान शुद्ध सामयिक कहते हैं। उन्होंने कहा जहां अनुकूलता को पाकर व्यक्ति के चित् में अहंकार न जगे और प्रतिकूलता ,खिन्नता ,खेद, आक्रोश और वैर विरोध को पैदा न कर सके ,वही व्यक्ति की सही सामायिक है।
साध्वी परमेष्ठी वंदना ने कहा कि धन्य है वह हाथ जो प्रतिदिन परमात्मा की पूजा अर्चना किया करते हैं ।धन्य हैं वे कान जो प्रतिदिन परमात्मा की वाणी और परमात्मा के गुणों का श्रवण किया करते हैं ।धन्य है वे कंठ जो परमात्म- स्तुति -कीर्तन के लिए मुखरित होते हैं और धन्य है वह नेत्र जो परमात्मा पुरुष के दर्शन को तत्पर रहते हैं ।जो न केवल किसी मंदिर की प्रतिमा में ,बल्कि प्रत्येक प्राणी में ही उस प्रभु के दर्शन किया करते हैं ।ऐसे नेत्रों का बाजार में विचरण भी मंदिर में परिक्रमा लगाने के समान होता है।
साध्वी ने प्रतिक्रमण को लेकर कहा अपराध या गलती हो जाना स्वाभाविक है, मनुष्य तो क्या देवताओं से भी गलती हो जाया करती है। पर उस गलती पर पश्चाताप करना और उस गलती को फिर कभी ना दोहराने का संकल्प करना ही प्रतिक्रमण है ।सुबह शाम बैठकर प्रतिक्रमण के पाठों को दोहराना तो मात्र द्रव्य प्रतिक्रमण ही है ,पर सच्चा प्रतिक्रमण तो तब होता है जब व्यक्ति सुबह -शाम, एकांत में बैठकर यह चिंतन करता है कि मुझसे अब तक क्या-क्या पाप ,अपराध या गलतियां हुई है ।उसकी चेतना में पश्चाताप के अंकुर प्रस्फुटित होते हैं ।उसका हृदय इस दृढ़ संकल्प से भर जाता है कि अब मैं इन गलतियों को किसी भी परिस्थिति में नहीं दोहराऊंगा। प्रतिक्रमण के ऐसे भाव व्यक्ति की चेतना को परम उत्कृष्ट स्थिति तक पहुंचा देते हैं।
मंच का संचालन संघ के अध्यक्ष ने किया और साथ ही साथ राखी एवं स्वंत्रता दिवस को होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी उपस्थित श्रावको को दी।
धर्म पथ पर आगे बढ़ाती है सामयिक :विश्ववंदना
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