मुंबई। आ. रविशेखरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नेमानी वाड़ी, ठाकुरद्वार के प्रांगण में शिबिर का आयोजन हुआ, पं. ललितशेखरविजयजी म. सा. ने “अधिकार या कर्तव्य” विषय पर भिन्न भिन्न दृष्टांतों के माध्यम से प्रवचन दिया।
2 प्रकार के जीवन, अधिकार और कर्तव्य, सभी जिस पद पर बैठे हैं, वो अधिकार के लिए लड़ रहे हैं, कर्तव्य को किनारे कर दिया हैं। व्यक्ति 3 प्रकार से कर्तव्य निभाता हैं, वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण करना, असहाय की सेवा करने के लिए कोठार भरना और खुद के लिए और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए निवेश करना।
आज कल के जमाने में दादा-दादी और बच्चों के बीच में माता-पिता पीस रहे हैं फिर भी मत-पिता देहली दीपक की तरह दोनों को प्रकाशित कर रहे हैं, बड़ों के प्रति कृतघ्नता और छोटों के प्रति करुणा और वात्सल्य रखते हैं। हरिभद्रसूरी कहते हैं के जो माता-पिता की सेवा करता हैं वहीं दीक्षा योग्य हैं वो गुरु की भी सेवा करेगा। मुनिसुव्रत स्वामी के शासन में रामायण हुई और नेमिनाथ भगवान के शासन में महाभारत हुआ, रामायण के पात्र कर्तव्य पालन और महाभारत के पात्र अधिकार को लेकर बैठे हैं, रामायण सकारात्मक और महाभारत नकारात्मक संदेश देते हैं।
कुसंस्कारो का स्रोत बढ़ रहा हैं, सुसंस्कारों का स्रोत घट रहा है, पाठशाला खत्म होने की कगार पर हैं, युवा पीढ़ी का साधु-साध्वी से जुड़ाव-लगाव कम हो रहा हैं, माता-पिता बच्चों को समय और ध्यान नहीं दे रहे हैं, बच्चों से बहुत अपेक्षा रखते हैं और ज्यादा लाड़-प्यार आदि कारण कर्तव्यों को भुलाते जा रहे हैं।
Parent की बच्चों के प्रति भूमिका, P से पर्सनल अटेंशन, A से अप्रिसीएसन , R से रेस्पेक्ट, E से इमोशनल एनवायरनमेंट, N से नो नेगेटिविटी और कंप्लेंट, T से टेंशन फ्री रखना और टाइम देना।
किशन सिंघवी और कुणाल शाह के अनुसार आज शिबिर के बाद 9 लकी ड्रा निकाले गए और “ऋषभ महा-विद्या तप” के बाइसवें दिन के एकासणे की व्यवस्था भी अच्छे से हुई। इन सभी मौकों पर ठाकुरद्वार संघ के पदाधिकारी और समर्पण ग्रुप के कार्यकर्ताओं के अलावा सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं भी मौजूद रहे।
ठाकुरद्वार में शिविर का आयोजन, ‘अधिकार या कर्तव्य’ का दृष्टांत के माध्यम से सुंदर विश्लेषण
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