संस्कारों की विरासत है मंत्र दीक्षा- मुनि श्री जिनेश कुमार जी
पालघर। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में अभातेयुप के तत्वाधान में स्थानीय तेरापंथ भवन में मंत्र दीक्षा का आयोजन तेरापंथ युवक परिषद द्वारा किया गया।
इस अवसर पर मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा मानव मन अनेक चित्त वाला है। उसका स्वभाव अत्यंत चंचल होता है। चंचल मन को स्थिर कर सके उसका नाम है मंत्र। मंत्र एक कवच है। प्रतिरोधात्मक शक्ति है। मंत्र एक सशक्त दुर्ग है जिसमें बाहर का एक अणु भी भीतर प्रवेश नहीं कर सकता। आध्यात्मिक मंत्रों की आराधना से अनिष्ट दूर हो जाते हैं। मंत्र का अर्थ है- विशिष्ट अक्षरों की संयोजन तथा दीक्षा का अर्थ है- नियमों का स्वीकरण। मंत्र दीक्षा का उद्देश्य है-बच्चों को नमस्कार महामंत्र से परिचित करवाना है। बच्चों को सुसंस्कारी व अच्छा इंसान बनाने के लिए मंत्र दीक्षा दी जाती है। मंत्र दीक्षा संस्कारों की दीक्षा है। युग के प्रवाह में बहती हुई संस्कारों की विरासत को थामने का उपक्रम है। आज बहुत सारे बच्चे मंत्र दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं वे मंत्र दीक्षा के नियमों का पालन करते हुए अच्छा जीवन बनाएं।
मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने अमर कुमार के कथानक के माध्यम से नमस्कार महामंत्र का महत्व बतलाते हुए बच्चों को विधिवत मंत्र दीक्षा प्रदान की मुनि श्री परमानंद जी ने बच्चों को त्रिपदी वंदना करवाई।
कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञानशाला के बच्चों के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण केतन राठौड़ ने किया। विरार तेयुप अध्यक्ष विजय जी धाकड़ ने अपने विचार व्यक्त किए। आभार ज्ञापन मनीष तलेसरा ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रितम राठौड़ ने किया। मंत्र दीक्षा के पश्चात बच्चों को मंत्र दीक्षा किट प्रदान की गई।
मंत्रदीक्षा कार्यक्रम में पालघर, बोईसर, मनोर, सफाला, वसई, विरार आदि क्षेत्रों के सैकड़ों बच्चों ने मंत्र दीक्षा ग्रहण की। कार्यक्रम को सफल बनाने में तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह जानकारी दिनेश राठौड़ द्वारा दी गई।