तप आत्मशुद्धि का पवित्र यज्ञ- साध्वीश्री निर्वाणश्री
धुलिया। महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी सुशिष्या साध्वीश्री निर्वाणश्रीजी ठाणा-6 के पावन सान्निध्य में धुलिया से देवीदास जीरे (कर्मणा जैन ) और श्रीमती संगीता सूर्या ने ” ग्यारह दिन ” के तप का प्रत्याख्यान किया। उनके तप के अनुमोदन में विदुषी साध्वीश्री निर्वाणश्री जी ने कहा – कर्मणा जैन होना बड़े सौभाग्य की बात है देवीदास भाई ने जिस सरलता से जैन धर्म को समझा है ,उतनी ही ढृढता से उसका पालन कर रहे हैं। मै उनकी धर्मनिष्ठा न तपनिष्ठा की अनुमोदना करती हूँ। आज धुलिया का सूर्या परिवार भी एक विशेष तपोहार उपह्रत कर रहा है। संगीता ने पूर्व भी कई तपस्याएं की है। इसी प्रकार वह तप से अपना आत्मतेज निखारती रहें। तप आत्मशुद्धि का पवित्र यज्ञ है। प्रबुद्ध साध्वीश्री डा.योगक्षेमप्रभाजी ने अपने प्रेरक व्यक्तत्व में कहा- आत्मविशोधि का महान उपक्रम है तप । तप से पूर्व संचित कर्मों के वृंद टूट जाते हैं। नाना प्रकार के व्यजनों से मन को तृप्त करने की बजाय स्वेच्छा से तप करना बहुत कठिन है। जिन्होंने यह तप किया है, वे साधुवाद के पात्र हैं।
इस अवसर पर महासभा से खान्देश के आंचलिक प्रभारी सुरजमलजी सूर्या ने अपने भावपूर्ण उद्गार व्यक्त किए। तेयुप के मंत्री पवन सिंधी ने कुशलतापूर्वक अनुमोदना में विचार प्रकट किए। ते. सभा के मंत्री नोरतनमलजी चोंरडिया व सहमंत्री नीरज समदरिया ने ” तपस्या री आई रे बहार ” गीत की सुंदर प्रस्तुति दी। जलगांव सभा की और से माणकचंद जी बैद व महिला मंडल की पूर्व अध्यक्ष संतोष छाजेंड़ धुलिया सभा की और से तपस्वियों का साहित्य से सम्मान किया।
इस अवसर पर साध्वीवृंद ने समवेत रूप से “आओ आओ आज ” गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। मुंबई से समागत सभा के पूर्व उपाध्यक्ष निर्मल जी कुमठ ने अपनी भावना व्यक्त की। साध्वीश्री जी के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट किए।इस अवसर पर धुलिया से सूर्या जी का परिवार उपस्थित था। यह जानकारी संजय सूर्या ने दी।