नई दिल्ली: भारत में 10 साल (2006 से 2016) में 27.1 करोड़ लोग गरीबी के दायरे से बाहर हुए। संयुक्त राष्ट्र की ओर से गुरुवार को जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी के ग्लोबल इंडेक्स (एमपीआई) में भारत सबसे ज्यादा तेजी से नीचे आया है। देश में संपत्तियों, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता और पोषण जैसे क्षेत्रों में काफी सुधार हुआ है। ये क्षेत्र गरीबी के इंडेक्स को मापने के पैमानों में शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2005-2006 में देश में 64 करोड़ यानी 55.1% लोग गरीब थे। 2015-16 में यह संख्या घटकर 36.9 करोड़ (27.9%) रह गई। भारत की एमपीआई वैल्यू 2005-2006 के 0.283 से घटकर 2015-16 में 0.123 रह गई। एमपीआई में कुल 10 पैमाने शामिल हैं।
पैमाना | 2005-2006 | 2015-16 |
पोषण की कमी | 44.3% | 21.2% |
शिशु मृत्यु दर | 4.5% | 2.2% |
खाना बनाने के ईंधन का अभाव | 52.9% | 26.2% |
स्वच्छता का अभाव | 50.4% | 24.6% |
पेयजल का अभाव | 16.6% | 6.2% |
बिजली का अभाव | 29.1% | 8.6% |
घरों का अभाव | 44.9% | 23.6% |
संपत्तियों का अभाव | 37.6% | 9.5% |
इनके अलावा स्कूल जाने के वर्ष और स्कूल में उपस्थिति की दर भी इंडेक्स में शामिल है। रिपोर्ट में दुनिया के 101 देशों के अध्ययन को शामिल किया गया। इनमें 31 कम आय वाले, 68 मध्यम आय वाले और 2 उच्च आय वाले देश शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 1.3 अरब लोग बहुआयामी रूप से गरीब हैं। बहुआयामी गरीबी के पैमानों में कम आय के साथ ही खराब स्वास्थ्य, काम की गुणवत्ता में कमी और हिंसा का खतरा भी शामिल हैं।