बच्चे बीमार न हो जाएं, इसके लिए माता-पिता क्या-क्या जतन नहीं करते। तकनीक और जागरूकता बढ़ने के साथ लोग बच्चे को कीटाणुओं से दूर रखने की हर संभव कोशिश करते हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों को बचपन में कीटाणुओं से दूर रखकर संक्रमण से ज्यादा बचाया जाता है आगे चलकर उन्हें ल्यूकेमिया (बचपन में होने वाला कैंसर) का खतरा होता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि माता-पिता बच्चों को घर के बाहर धूल-मिट्टी में खेलने दें ताकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सके।
रोग प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत होना जरूरी : इसके पीछे यह वजह है कि अपने पहले साल में जो बच्चे संक्रमण का सामना करते हैं उनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत हो जाती है। नेचर रिव्यूज कैंसर नाम के जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, जो कि बच्चों का बहुत सामान्य कैंसर है, उसके लिए दो चरण जिम्मेदार होते हैं। पहला चरण जन्म लेने से पहले जीन में कुछ बदलाव हो जाना और दूसरा बचपन में ज्यादा साफ-सुथरे रहने की वजह से किसी तरह का संक्रमण न होना।
संक्रमण न होने के कारण बचपन में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाती। जिन बच्चों को पहले साल में ज्यादा साफ-सफाई में रखा जाता है और उनमें लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह एक ऐसा कैंसर है जो शून्य से चार साल के बच्चों में पाया जाता है। यह बहुत तेजी से बढ़ता है। बचपन में होने वाले कैंसर के मामलों में 29 फीसदी मामले लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के ही होते हैं। लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च के प्रोफेसर मेल ग्रीव्स ने एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के सबूतों पर गहन अध्ययन किया।
शोधकर्ता मेल ग्रीव्स ने कहा, मैं पिछले 40 वर्षों से बचपन में होने वाले लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया पर शोध कर रहा हूं, और इतने वर्षों में इसे समझने और इसके इलाज करने में हमने काफी गति हासिल की है। वर्तमान समय में लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के 90 फीसदी मामलों में इलाज सफल होता है।
- 29 फीसदी कैंसर के मामले एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के होते हैं बच्चों में
- पूर्व शोधों को नकारा : नए शोध ने पूर्व के शोधों को भी नकारा है। पूर्व के शोधों में रेडिएशन, बिजली के तारों, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों और इंसानों द्वारा बनाए गए रसायनों को कैंसर का कारण बताया गया है। शोधकर्ता ग्रीव्स ने कहा कि अभिभावकों को इस बीमारी के पनपने के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं समझना चाहिए। अगर गर्भ में ही कोई जेनेटिक बदलाव हो रहा है तो इसमें कोई क्या कर सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि बचपन में बच्चों को घर से बाहर निकलने दें, धूल-मिट्टी में खेलने दें ताकि उनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो सके।