संजय लीला भंसाली की प्रोडक्शन में बनी मंगेश हडवले निर्देशित ‘मलाल’ फिल्म मलाल को देखने के बाद वाकई में मन में एक दुख उत्पन्न हो जाता है, फ़िल्म का अंतिम दृश्य मन के अंतरिम तारों को छेड़ जाता है.
फ़िल्म की कहानी चाल में रहनेवाले एक टपोरी मराठी लड़के शिवा मोरे (मीजान जाफरी) की है, कैसे उसकी चाल में आई एक नई लड़की आयशा त्रिपाठी (शरमीन सहगल) धीरे धीरे उसकी जिंदगी में परिवर्तन ला देती है, फिर कैसे एक बिगड़ैल गरीब लड़का सुधर जाता है और अपनी जिंदगी में तरक्की प्राप्त करता है. लेकिन वह एक ऐसी चोट खाता है कि जिंदगी भर उसे मलाल रहता है कि वह समय के उस पल को रोक ना सका.
यह एक प्यारी सी लवस्टोरी है जिसके हल्के फुल्के पल हँसाते, गुदगुदाते तो कभी आँसु लाते हैं. मीजान जाफरी का अभिनय अच्छा है. जावेद जाफरी के बेटे होने के नाते डांस भी अच्छा किया है. शरमीन का किरदार बड़ा प्रभावी था परंतु वह अपने भाव सही ढंग से पेश करने में असफल रही. फिल्म के अन्य किरदारों का प्रभाव भी सामान्य रहा है. फ़िल्म के गाने सुरीले और कर्णप्रिय है. फिल्मांकन में कमी दिखाई देती है त्यौहार और मौसम सीन के हिसाब से आते जाते हैं. फ़िल्म के संवाद भी सामान्य स्तर का है.
मलाल फ़िल्म में मलाल तो जरूर रह गयी है फ़िल्म का अंतिम दृश्य प्रभावी है युवाओं को यह लवस्टोरी पसंद आ सकती है. परंतु यह पुराने जमाने की प्रेमकहानी और त्याग पर आधारित फिल्म है.
– गायत्री साहू