नई दिल्ली: ऐसे समय जब देश में कृषि कर्ज माफी एक बड़ा मुद्दा बन चला है तब आरबीआइ ने एक बार फिर इसके प्रति परोक्ष चेतावनी दी है। केंद्रीय बैंक ने इसके लिए राज्य सरकारों की तरफ से पिछले दो वर्षो में लागू की गई इस तरह की योजनाओं के असर को आधार बनाया है। इन योजनाओं का असर देश के बैंकिंग सेक्टर पर साफ तौर पर दिखाई देने लगा है। मोटे तौर पर आरबीआइ ने राज्यों की कृषि कर्ज माफी योजना के चार बड़े विपरीत असर का जिक्र किया है। इसका सबसे विपरीत असर तो यही होता है कि फंसे कर्जे बढ़ने के खतरे को देख बैंक किसानों को कर्ज देने में ही कंजूसी बरतने लगते हैं।
कृषि क्षेत्र में एनपीए का अनुपात 8.5 फीसद से बढ़कर 8.9 फीसद हुआ
आरबीआइ के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016-17 में कृषि कार्य के लिए आवंटित कर्ज की वृद्धि दर 12.4 फीसद थी जो वर्ष 2017-18 में घट कर 3.8 फीसद रह गई थी। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में यह 5.8 फीसद है। आरबीआइ ने इसके लिए कृषि कर्ज माफी को जिम्मेदार तो ठहराया है, लेकिन इसके पीछे की वजह पर साफ तौर पर प्रकाश नहीं डाला है। इसकी वजह यह बताया जा रहा है कि राज्यों में जब भी चुनावों से पहले कृषि कर्ज माफी पर जब राजनीतिक बहस शुरु होती है तो किसान कर्जे को चुकाना कम कर देते हैं। ऐसा माहौल हाल में संपन्न मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले इन राज्यो में देखा गया था और बैंकों ने इसकी शिकायत वित्त मंत्रालय से भी की थी। किसानों की तरफ से कर्ज नहीं मिलने की आशंका से बैंक भी उन्हें कर्ज देने से हाथ खींचने लगते हैं।
कृषि क्षेत्र को आवंटित कर्ज की वृद्धि दर 12.4 फीसद से घट कर 3.8 फीसद हुई
आरबीआइ की तरफ से पेश एक दूसरा डाटा देखेंगे तो यह बात और स्पष्ट होती है। कृषि क्षेत्र में बैंकों के फंसे कर्ज यानी एनपीए (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स- नहीं चुकाई गई कर्ज की राशि) की राशि वर्ष 2016-17 में 1,30,500 करोड़ रुपये की थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 1,57,400 करोड़ रुपये हो गई। इसमें छोटे व सीमांत किसानों की तरफ से नही लौटाये गये कर्जे की राशि (जो एनपीए में तब्दील हो गये) को देखे तो यह 75,700 करोड़ रुपये से बढ़ कर 82,100 करोड़ रुपये हो गई है।
सनद रहे कि कृषि कर्ज माफी के दायरे में छोटे व सीमांत किसान ही ज्यादा आते हैं। आरबीआइ ने कहा है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान कृषि कर्ज की रफ्तार इसलिए कमजोर पड़ी है कि बैंकों को वहां ज्यादा जोखिम दिखा और कई राज्यों ने कृषि कर्ज को माफ करने का ऐलान किया।
वर्ष 2016-17 और वर्ष 2017-18 के दौरान महाराष्ट्र ने 34 हजार करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश मे 36 हजार करोड़ रुपये, पंजाब में 10 हजार करोड़ रुपये, कर्नाटक में 8 हजार करोड़ रुपये के कृषि कर्ज माफ किये गये हैं। इसके अलावा इस महीने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी किसानों के कर्ज माफ करने की प्रक्रिया शुरु की गई है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आगामी आम चुनाव में कृषि कर्ज माफी को एक बड़ा मुद्दा बनाने का ऐलान कर दिया है। सरकार के भीतर भी किसानों को कर्ज माफ करने को लेकर विमर्श चल रहा है।
कृषि कर्ज माफी पर आरबीआइ ने फिर दी चेतावनी, बैंकों को रास नहीं आई कर्ज माफी योजना
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