- ताथावड़े को पावन बनाने के लिए महातपस्वी महाश्रमण ने किया 13 कि.मी. का विहार
- क्षमा और मैत्री के भावों को विकसित करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- श्रद्धालुओं ने अपने आचार्यश्री की अभिवंदना में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति
22.03.2024, शुक्रवार, ताथावड़े, पुणे (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में पुणे जिले की धरा को पावन बना रहे हैं। पुणे शहर की ओर गतिमान शांतिदूत के दर्शन व मंगलवाणी से सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली जनता भी लाभान्वित बन रही है। शुक्रवार को प्रातःकाल महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के संग मंगल प्रस्थान किया। पिंपरी-चिंचवड़ में पदार्पण से पूर्व लगभग 13 कि.मी. का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ताथावड़े गांव में पधारे। मानवता के मसीहा को अपने गांव में पाकर यहां के लोग हर्षविभोर बने हुए थे। उन्होंने आचार्यश्री का अपने गांव में सश्रद्धा स्वागत किया।
अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि आदमी के भीतर क्षमा की वृत्ति तो कभी वैर की वृत्ति भी उभरती है। किसी के प्रति शत्रुता का भाव तो कभी मैत्री का भाव भी आता होगा। सभी के प्रति मैत्री के भाव का विकास होना बहुत ऊंची बात होती है। पवित्र मैत्री भाव का होना भी एक साधना की ऊंचाई की बात होती है। सभी प्राणियों के प्रति आदमी के मन में मैत्री का भाव हो। चाहे अमीर हो अथवा गरीब सभी के प्रति मैत्री भाव हो तो परस्पर प्रेम भाव का विकास भी हो सकता है।
मित्रता और क्षमा का भाव मानव को उत्कृष्ट बनाता है। गुस्सा तो जीवन मंे कमजोरी होती है। गृहस्थ जीवन में क्षमा व मैत्री भाव के विकास होना चाहिए। कभी गुस्सा भी आए तो भी किसी के प्रति अपशब्द का प्रयोग न हो। जितना संभव हो सके, सहन करने का प्रयास भी करना चाहिए। कहा गया है- सहन करो, सफल बनो। क्षमा व मैत्री बहुत अच्छा धर्म है। उसे आदमी को अपने जीवन में धारण करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को प्रतिकूलता को भी सहन करने का प्रयास हो और आलोचक के प्रति मंगल मैत्री की भावना रहे। आदमी के भीतर मैत्री की भावना कई बार दूसरों को भी प्रभावित करती है और शत्रु भी मित्र बन सकता है। मैत्री की भावना से वैर भाव की बर्फ भी पिघल सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि हम महाराष्ट्र की धरती पर विहरण कर रहे हैं। कभी परम पूज्य गुरुदेव तुलसी ने भी महाराष्ट्र की यात्रा की थी। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कुछ यात्रा की थी। महाराष्ट्र की धरती को संतों की धरती कही गई है। हमारे संघ में भी कई संत और साध्वियां आए हुए हैं। जहां भारत एक राष्ट्र है और उसमें यह महाराष्ट्र है। यहां हमारी यात्रा हो रही है। महाराष्ट्र में खूब धर्म की जागरणा होती रहे। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की भावना पुष्ट रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री प्रकाश गांधी, श्री प्रकाश छाजेड़ व श्रीमती डिंपल छाजेड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-पिंपरी चिंचवड़ व श्रीमती संगीता चपलोत ने गीत का संगान किया।