-जीवन के आठवें दशक में दीक्षा ग्रहण कर धनराज बने मुनि ध्यानमूर्ति
-आर्षवाणी का उच्चारण कर दीक्षा को आचार्यश्री ने किया पूर्ण
22.11.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के करकमलों से मायानगरी मुम्बई के पंचमासिक चतुर्मास की सम्पन्नता से पूर्व नन्दनवन परिसर में बने विशाल तीर्थंकर समवसरण में एक और दीक्षा प्रदान की गई।
सितम्बर महीने के अंत में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त हुई एक 77 वर्षीय श्री धनराज बैद को। जिन्होंने साधु बनने से पूर्व सीए, सीएस और जैनोलॉजी से एमए किया। अपने जीवन उन्होंने एनटीपीसी, एनएचआई, सेल, एनएचपीसी जैसी बड़ी कम्पनियों में ऑडिटर रहकर सेवाएं दीं। जब वे अपने जीवन के आठवें दशक में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के समक्ष दीक्षा की भावना रखी तो तेरापंथ धर्मसंघ में नित नवीन इतिहास का सृजन करने वाले आचार्यश्री ने विशेष रूप से दीक्षा प्रदान करने की घोषणा कर दी।
तीर्थंकर समवसरण में बुधवार को मंच के दोनों ओर उपस्थित चारित्रात्माओं के मध्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी विराजमान हुए तो उनकी मंगल वयोवृद्ध मुमुक्षु श्री धनराज बैद भी उपस्थित हुए। आज के दीक्षा के साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ दीक्षा समारोह का शुभारम्भ हुआ। मुमुक्षु सुरेन्द्र और मुमुक्षु मुकेश ने मुमुक्षु श्री धनराज बैद का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। मुमुक्षु के पुत्र श्री अनिल बैद व उनके अन्य परिजनों से आचार्यश्री के करकमलों में दीक्षा का आज्ञा पत्र अर्पित किया। मुमुक्षु श्री धनराज बैद ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित करते हुए जैन भगवती दीक्षा के महत्त्व को वर्णित किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए धर्म-ध्यान के संदर्भ में चार प्रकार की अनुप्रेक्षाओं का वर्णन किया और कहा कि इनमें एक अनुप्रेक्षा है आदमी को धर्म की शरण में जाने का प्रयास करना चाहिए। जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए मुनि दीक्षा स्वीकार की जाती है। आज भी दीक्षा का प्रसंग है। भैक्षव शासन में दीक्षाएं परंपरागत रूप से होती आ रही हैं। दीक्षा लेना और दीक्षा देना दोनों ही बड़ी बात होती है। 77 वर्ष की अवस्था में दीक्षा देने का प्रसंग है। कितनी सारी डिग्री हासिल कर और कितनों को सीए बनाने वाले की विरल दीक्षा होने जा रही है।
आचार्यश्री ने दीक्षा का क्रम प्रारम्भ करने से पूर्व मुमुक्षु के परिजनों से मौखिक स्वीकृति के साथ मुमुक्षु के मनोभाव को भी जांचा। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए अपने पूर्वाचार्यों व भगवान महावीर का स्मरण करते हुए 77 वर्षीय मुमुक्षु श्री धनराज बैद को मुनि दीक्षा प्रदान कर दी। आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने उन्हें अतीत की आलोयणा कराई। केशलोच की प्रक्रिया को सम्पन्न करते हुए रजोहरण व पूजंणी भी प्रदान की।
आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि का नामकरण नवदीक्षित साधु का नाम मुनि ध्यानमूर्ति घोषित किया। इस नाम को सुनते ही पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। नवदीक्षित साधु ने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्रदान किया तो उपस्थित जनता में नवदीक्षित साधु को वंदन कर उनका अभिनंदन किया। आचार्यश्री ने दीक्षा के क्रम को सम्पन्न करते हुए नवदीक्षित मुनि को साधुचर्या की जागरूकता से पालना करने की भी प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनिजी को सार-संभाल व शिक्षा आदि के लिए मुनि दिनेशकुमारजी को सौंपा।
विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ व अन्य कार्यकर्ताओं ने मुम्बई मर्यादा महोत्सव-2024 के लोगो को लोकार्पित किया।