प्रथम सघन साधना शिविर का हुआ शुभरंभ
संथारा मय साध्वी श्री पावनप्रज्ञा जी का देवलोकगमन
15.10.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी का पंचमासिक चातुर्मास सानंद गतिमान है। आचार्यश्री के दर्शन, सेवा–उपासना कर मुंबईवासी अध्यात्म की ऊर्जा से ओतप्रोत हो रहे है। पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में आज दोपहर में साध्वी श्री पावनप्रज्ञा जी का संथारा मय देवलोकगमन हो गया। ज्ञातव्य है कि दिनांक 5 अक्टूबर को आचार्यश्री ने साध्वी पावनप्रज्ञा जी का समणी दीक्षा से श्रेणी आरोहण कर भगवती दीक्षा प्रदान करवाई थी। दिनांक 11 अक्टूबर को तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था। लगभग 4 बजे बैकुंठी यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में मंगल देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा– भगवती सूत्र के १८ वें शतक में वर्णन किया गया कि भगवान महावीर राजगृह नगर में विराज रहे थे। उस समय मद्दुक नामक श्रावक पैदल चलकर उनके दर्शन के लिए जा रहा था। पैदल चलने का भी अपना महत्व होता है व वाहन की जीव-हिंसा से बचाव भी हो सकता है। एक श्रावक की यथार्थ एवं जिन वाणी पर अडिग आस्था होनी चाहिए। जिन वचनों पर दृढ़ता होनी चाहिए। मद्दुक को मार्ग में अन्य मत वाले लोग मिल गये व मद्दुक से प्रश्न करने लगे कि भगवान महावीर पंचास्तिकाय के बारे में वर्णन करते हैं व उन्हें अरूपी भी बतलाते है, यह कैसे ? मद्दुक ने बतलाया कि अस्तिकाय अरूपी है, इसे कार्य के आधार पर जाना जा सकता है। लेटे हुए आदमी का श्वास चलता है और उनका पेट श्वास भरते समय ऊपर जाता है व छोड़ते समय नीचे जाता है और उसके आधार पर हम जान लेते है कि यह आदमी जीवित है।यह उसके जीवित रहने का एक संकेत है। मृत आदमी का श्वास नहीं चलता। जो दिखाई नहीं देता उसे सामान्य लोगों के द्वारा जान पाना कठिन होता है वे ज्ञान के बिना उसे मानने में भी संकोच का अनुभव करते हैं।
गुरुदेव ने आगे प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि मद्दुक ने उत्तर में बतलाया। पेड़ के पत्तों का हलन-चलन कैसे होता है ? उन्होंने कहा – हवा से। मद्दुक ने फिर पूछा – क्या हवा दिखाई देती है ? पेड़ के पतों व फूलों से सुगंध भी आती है ? हां ! तो वह क्या दिखाई देती है ? अन्य मत वालों ने कहा नहीं। फिर भी उसके अस्तित्व में कोई बाधा नहीं व उसको हम मानते है। जो तत्व आँखों से दिखाई नहीं देता वह भी होता है, आत्मा भी हमें दिखाई देती। उसके लिए तत्वों का ज्ञान भी होना चाहिए और जिनवाणी पर अडिग श्रद्धा भी। श्रावक के लिए आवश्यक है की वो भगवान द्वारा प्रज्ञप्त धर्म के प्रति श्रद्धा शील रहे।
नवरात्रि के प्रारंभ के साथ जी गुरुदेव द्वारा जाप अनुष्ठान करवाया गया। कार्यक्रम में साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने भी सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया।
इसके साथ ही आज मुख्यमुनि श्री महावीर के निर्देशन में प्रथम सघन साधना शिविर का शुभारंभ हुआ। प्रवास व्यवस्था समिति के तत्वावधान में स्प्रिचुअल कांफ्रेंस ‘ट्रांसम्यूट’ का आयोजन किया गया। जिसके बारे में श्री दिलीप सरावगी ने जानकारी दी।
यथार्थ के प्रति रहे श्रद्धा भाव – आचार्य महाश्रमण
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