जोधपुर। बाड़मेर निवासी जोधपुर प्रवासी श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती देवी बाई धर्मपत्नी स्व. पारसमलजी गोलेच्छा का संथारा आज दिनांक 22 सितम्बर को प्रातः 9 बजकर 30 मिनट पर संथारा परिसम्पन् हुआ। ध्यात्व्य है दिनाक 18 सितम्बर को परम् पूज्य गुरुदेव महाश्रमणजी की आज्ञा से साध्वी कुंदन प्रभाजी आदि ठाणा 4 ने श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती देवी बाई धर्मपत्नी स्व. पारसमलजी गोलेच्छा (पोल वाले) को तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था।
संथारा साधिका की बैंकुठी यात्रा मध्यान्ह में शास्त्री नगर स्थित निवास स्थान से रवाना होतर सिंवाची गेट स्थित स्वर्गाश्रम पहुंची, जहां तेयुप सरदारपुरा द्वारा जैन संस्कार विधि से संथारा साधिका का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। बैंकुठी यात्रा में जैन जैनेत्तर हजारों लोगों का हुजुम संथारा साधिका को अंतिम विदाई देने पहुंचा। 92 वर्षीय संथारा साधिका, जोधपुर के व्यावसायी श्रीमान ओमप्रकाश जी गोलेच्छा की मातु श्री थी, जिन्होने साहस का परिचय देकर, संथारें का प्रत्याख्यान किया था।
संक्षिप्त परिचय
जैन धर्म में श्रावक के तीन मनोरथ होते है जिसमें तीसरे मनोरथ में श्रावक यह भावना भाता है कि कब वह समय आयेगा जब वह अंतिम समय में संलेखना व अनशन कर, मरण की इच्छा न करता हुआ समाधि मरण को प्राप्त करेगा।
ऐसी ही एक सुश्राविका श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती देवीबाई धर्मपत्नी स्व. श्री पारसमलजी गोलेच्छा (पोल वाले) बाडमेर जोधपुर ने श्रावक के तीसरे मनोरथ को पूर्ण किया है।
आप श्री का जन्म 15 जनवरी 1931 में हस्तिमलजी सालेचा बाड़मेर में हुआ। आप हस्तिमलजी की चार संतानो में दूसरी संतान थी। बचपन से ही आपको जैन तेरापंथ धर्मसंघ में अच्छी आस्था थी।
लगभग 70 वर्ष तक आप ने रात्रि में भोजन करने का त्याग रखा। आप तत्व ज्ञान की धनी है और समण संस्कृति संकाय द्वारा आयोजित जैन विद्या की 8 कक्षा तक उत्तीर्ण की हुई है।
रोजाना 4 से 5 सामायिक करना आपका नित्यकर्म था। आप श्री 10 साल तक तेरापंथ महिला मंडल, बाडमेर की अध्यक्षा रह चुकी है। तेरापंथ धर्मसंघ एवं संघपति के प्रति आपकी श्री की अटूट आस्था और उल्लेखनीय आंतरिक श्रद्धा का मूल्यांकन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी ने टापरा मर्यादा महोत्सव पर आपको श्रद्धा की प्रतिमूर्ति के संबोधन से संबोधित किया है।
आचार्य महाश्रमणजी ने जोधपुर प्रवास के दौरान देवीबाई की स्वास्थ्य अवस्था और उनकी विनती को सम्मान देते हुए अनन्त कृपा करते हुए देवीबाई के निवास पर आकर दर्शन लाभ दिया था।
आप श्री अपने पीछे 3 बेटे, 3 बेटी, 4 पौत्र और 4 पौत्रियों और पढ़पोत्र और पढ़पोत्री का भरापूरा परिवार छोड़ जा रही है।
सरदारपुराः संथारा साधिका की देह पंचतत्व में विलीन
Leave a comment
Leave a comment