– नन्दनवन में पर्युषण का शिखर दिवस भगवती संवत्सरी का भव्य आध्यात्मिक आयोजन
– भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के साथ युगप्रधान आचार्यश्री ने दी अनेक प्रेरणाएं
– पूरे दिन श्रद्धालुओं पर बरसती रही अमृतवाणी, अभिस्नात होते रहे श्रद्धालु
19.09.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : मायानगरी मुम्बई में जैन धर्म का सबसे बड़ा महापर्व पर्युषण महापर्व और उसका भी शिखर दिवस संवत्सरी का दिन। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नन्दनवन में श्रद्धा, विश्वास, आस्था, त्याग, संयम और तपस्या मानों ज्वार-सा उमड़ रहा था। मायानगरी में भौतिक प्रतिस्पर्धा में भागने वाले लोग आज त्याग, और तपस्या के लिए आतुर नजर आ रहे थे। मानों यह महातपस्वी महाश्रमण के शुभागमन का प्रभाव था कि मुम्बईवासियों की ओर से इस चतुर्मास में अभी तक सौ के आसपास मासखमण और उससे भी अधिक की तपस्या सम्पन्न हो चुकी है। अभी भी कितने श्रद्धालु अपनी-अपनी तपस्याओं में प्रवर्धमान हैं। मासखमण से कम की तपस्या करने वाले तपस्वियों की संख्या तो सैंकड़ों से ज्यादा है।
ऐसे महातपस्वी, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मंगलवार को पर्युषण महापर्व का शिखर दिवस संवत्सरी महापर्व का आध्यात्मिक आगाज हुआ। तीर्थंकर समवसरण ही नहीं उसके आसपास का पूरा परिसर श्रद्धालुओं से पटा हुआ-सा नजर आ रहा था। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने गीत का संगान किया।
युगप्रधान, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण से पावन देशना प्रदान करते हुए कहा कि आज यहां संवत्सरी महापर्व को आराधित कर रहे हैं। यह वर्ष में आने वाला एक दिन है जो आध्यात्मिकता से ओतप्रोत होता है। यह अध्यात्म की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। आज का दिन जितना संभव हो सके, उपवास, तप, ध्यान, जप के साथ पौषध आदि से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। यह पर्युषण का शिखर दिवस है। इस संवत्सरी दिवस को हम विभूषित करना चाहते हैं। आचार्यश्री ने घोषणा करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में आज से संवत्सरी को ‘भगवती’ से अलंकरण से अलंकृत किया जाता है। आज से भगवती संवत्सरी कहा जा सकता है।
आज के दिन जैसी धर्माराधना किसी अन्य दिन में देखने को नहीं मिलता है। हमारे यहां तो दिगम्बर परंपरा के दस लक्षण धर्म का भी मानों योग हो जाता है। इस पर्युषण के दौरान हमारे यहां चारित्रात्माओं द्वारा दस धर्मों की व्याख्या आदि की जाती है। आदमी को अपने जीवन में जैनत्व से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। नमस्कार महामंत्र का जप, आहार की शुद्धि, व्यसनों से मुक्ति हो तो जैनी जीवनशैली हो सकती है। आज भगवती संवत्सरी के साथ गणेश चतुर्थी भी है।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा अपने 27वें भव में वैशाली नगर के ब्रह्मकुण्ड गांव में ऋषभदत्त के घर मां देवानंदा के गर्भ में आते हैं। हमारे हिसाब से देवानंदा ही भगवान महावीर की पहली माता का सौभाग्य प्राप्त किया। इसका वर्णन आगमों में भी वर्णन किया गया है। कुछ समय बाद ही देवताओं द्वारा गर्भ को संकर्षित कर राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के गर्भ में स्थापित कर दिया जाता है। त्रिशला ने चौदह दिव्य स्वप्न देखे। मां को कष्ट न हो, इसके लिए बच्चे ने हलन-चलन बंद किया तो माता और ज्यादा दुःखी हो गई। फिर वापस हलन-चलन आरम्भ किया। भगवान महावीर की आत्मा ने जन्म से पहले ही माता-पिता के होते हुए दीक्षा न लेने का संकल्प कर लिया। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को जन्म होने पर खूब उत्सव बनाया गया। वर्धमान नामकरण किया गया। एक अवस्था के बाद वर्धमान को शिक्षा के लिए भेजा गया।
कहा गया है कि वह माता वैरी और पिता शत्रु के समान होता है जो अपने बच्चों को शिक्षा से वंचित रखते हैं। बच्चों में भी श्रवणकुमार जैसी भक्ति होनी चाहिए। इस मानव जीवन में माता-पिता का कितना योगदान होता है। अच्छा संस्कार देने के लिए मां पिता से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। मां की गोद तो मानों बच्चों का घर होता है। बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए गर्भावस्था से ही मां को अपने खानपान व व्यवहार को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े। प्रवचन के दौरान ही समय होने पर छह प्रहरी पौषध करने वालों को इसका त्याग कराया। अन्य तपस्वियों ने भी अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री ने भगवान महावीर की शादी, पुत्री का होना, माता-पिता का गमन, दीक्षा का ग्रहण, तपस्या व केवलज्ञान की प्राप्ति, तीर्थंकर बनने व मोक्षश्री का वरण करने प्रसंगों को सरसशैली में वर्णन किया। आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त जनता मानों अभिभूत थी। आचार्यश्री ने कहा कि हम भगवान महावीर से जुड़े धर्मसंघ में साधना कर रहे हैं। हमारे धर्मसंघ का विकास होता रहे, हम सभी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ते रहें।
उपस्थित जनता को मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने लोगों को भगवती संवत्सरी के संदर्भ में अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं। मंगलपाठ के उपरान्त आचार्यश्री प्रवास स्थल की ओर पधारे तब तक दोपहर के साढ़े बारह बज चुके थे। हालांकि श्रद्धालुओं को चारित्रात्माओं के संबोधन का लाभ प्राप्त होता रहा। लगभग तीन बजे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी पुनः तीर्थंकर समवसरण में पधारे और उपस्थित जनता को तेरापंथ के यशस्वी आचार्य परंपरा को विस्तार से व्याख्यायित करते हुए पूर्व के दस आचार्यों के व्यक्तित्वों व कर्तृत्वों को बड़े ही श्रद्धा के साथ व्याख्यायित किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व का वर्णन किया। इस प्रकार नन्दनवन में उपस्थित और चैनलों आदि के माध्यम से जुड़े श्रद्धालुओं को अपने आराध्य की कल्याणकारी मंगलवाणी के श्रवण का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूरे दिन बहने वाली धर्म की गंगा में डुबकी लगाकर श्रद्धालु अपने आपको धर्म से भावित बना रहे थे।