- संयमी बनने के लिए आचार्यश्री ने जनता को किया अभिप्रेरित
- कालूयशोविलास का आख्यान क्रम भी बढ़ा आगे
घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) 07.09.2023, गुरुवार। कई दिनों से प्रायः थम सी गई बरसात ने गुरुवार को मानों पुनः आगमन किया और प्रातःकाल से ही आसमान में छाए बादलों ने रिमझिम बरसात प्रारम्भ कर दी जो प्रायः दोपहर तक चलती रही। इस बरसात ने मौसम को शीतल बना दिया। नन्दनवन में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, राष्ट्रसंत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के माध्यम से सन्मार्ग दिखाया और साथ ही कालूयशोविलास के आख्यान से भी लाभान्वित कराया।
नन्दनवन परिसर में बने तीर्थंकर समवसरण से तीर्थंकर के प्रतिनिधि, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को समुपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि जीव अधिकरणी है या अधिकरण? भगवान महावीर ने समाधान प्रदान करते हुए कहा कि जीव अधिकरणी भी होता है और जीव अधिकरण भी होता है। प्रतिप्रश्न किया गया कि ऐसा कैसे? भगवान महावीर ने समाधान दिया कि अविरति के कारण से ऐसा होता है। अधिकरण एक शब्द है। अधिकरण का अर्थ है दुर्गति में ले जाने वाला या जीव को दुर्गति में ले जाने में निमित्त बनी है, वह तत्त्व अधिकरण है। इसमें शरीर और इन्द्रियां भी माध्यम बनती हैं। यह शरीर और इन्द्रियां धर्म का साधन भी बन सकती हैं तो दुर्गति की दिशा में ले जाने वाली होती हैं। यह शरीर धर्म का साधन भी बनता है और दुर्गति का भी साधन बनता है, यह निर्भर जीव पर होता है कि वह शरीर को धर्म, साधना की दिशा में लगाता है कि अधर्म, कुकर्म में लगाता है। संयमी जीवों का शरीर सुगति की प्राप्ति की दिशा और असंयमी जीवों का शरीर उसे दुर्गति ले जाने वाले होते हैं।
जो जीव संयमी, साधु, अप्रमत्त होते हैं, इन्द्रियों का संयम रखते हैं, वे सुगति, मोक्ष पथ के गामी होते हैं। जो जीव असंयमी, प्रमत्त, इन्द्रिय वासनों में लिप्त, कामी होते हैं, वे दुर्गति, अधोगति गामी बन जाते हैं। चौदह गुणस्थानों की दृष्टि से प्रथम चार गुणस्थान में रहने वाले जीवों को बाल भी कहा जाता है। छठे से चौदहवें गुणस्थान वाले जीव पंडित होते हैं और पांचवें गुणस्थान में रहने वाला जीव अर्थात श्रावक समाज जिसे बाल पंडित होते हैं। साधु तो सर्व सावद्य योग के त्यागी होते हैं। गृहस्थ को भी अपने जीवन में त्याग, संयम, साधना, स्वाध्याय, जप आदि में अपने समय का नियोजन कर अपनी आत्मा को दुर्गति में जाने से बचा सकते हैं। गृहस्थ अपने जीवन में समय-समय त्याग, प्रत्याख्यान, व्रत-संकल्प करात रहे तो वह अपना कितना बचाव कर सकता है। सामायिक, व्रत, त्याग आदि दुर्गति की ओर जाने से बचाव के साधन बन सकते हैं।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए पूज्य कालूगणी के महाप्रयाण के 36 मिनट बाद साधु जांच करते हैं। उसके बाद उनके पार्थिव शरीर को मगन मुनि द्वारा नया वस्त्र पहनाया जाता है। युवाचार्यश्री तुलसी द्वारा उनके पार्थिव शरीर को श्रावक समाज को संभला दिया जाता है। दूर-दूर से लोगों के पहुंचने का क्रम लग जाना आदि प्रसंगों को आचार्यश्री ने विस्तार से राजस्थानी भाषा में वर्णित किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा अनुदानदाता सम्मान समारोह का कार्यक्रम रहा। जिसमें व्यवस्था समिति में सहयोग करने वालों को व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों द्वारा पूज्यप्रवर के समक्ष सम्मानित किया गया।