- पूज्यप्रवर ने बताए तीर्यंच आयुष्य बंधन के हेतु
- कई दिनों पश्चात वर्षा के विश्राम से नंदनवन हुआ श्रद्धालुओं से गुलजार
30.07.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशस्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी मुंबई के नंदनवन परिसर में चातुर्मास हेतु सानंद विराजित है। कई दिनों से जारी बरसात ने आज कुछ विराम लिया तो मानों नंदनवन में श्रद्धालुओं का मेला सा लग गया। अपने आराध्य को दर्शन, सेवा–उपासना हेतु मुंबईवासी सहित बाहर के क्षेत्रों से समागत लालायित नजर आ रहे थे।
भगवती आगम व्याख्यानमाला के अंतर्गत गुरुदेव ने तीर्यंच गति के आयुष्य बंध के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा– जीव के तीर्यंच पशु आयुष्य बंद का मुख्य कारण है माया एवं झूठ-कपट। झूठ व कपट का एक जोड़ा है। साधु के तो तीन करण तीन योग से झूठ बोलने का त्याग होता है। गृहस्थ भी यदि मनोबली व निष्ठावान हो तो बात को तोड़ मरोड़ कर क्यों प्रस्तुत करे, बात तो यथार्थ रूप में ही प्रस्तुत करे। यदि संकल्प शक्ति दृढ तो माया व कपट से बचा जा सकता है। कोर्ट केस होते है, लोग न्यायालय जाते है। न्यायालय तो न्याय का मन्दिर है वह अन्यायालय नहीं बनाना चाहिए व वहां झूठ का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि हक मानना सही हो सकता है लेकिन झूठ बोलकर दूसरे का हक छीना जाना गलत है। व्यक्ति की सत्य के प्रति निष्ठा हो, संकल्प शक्ति मजबूत हो। गुस्सा, भय व लोभ के कारण झूठ का प्रयोग हो जाता है पर ये तीनों हम पर हावी न हो। पैसे से ज्यादा महत्व यदि चारित्र का हो व संस्थाएं भी गलत व अवैध काम से बच सकते हैं। प्रवचन सुनने से भी अनेक लाभ प्राप्त हो सकते है। ज्ञान की प्राप्ति, हेय व उपादेय के विवेक का जागरण, फिर प्रत्याख्यान, सामायिक व शुभ योगों में प्रवृति।
“मैं व्रती हूं” कार्यशाला के संदर्भ में पूज्य प्रवर ने फरमाया कि बारह व्रत जीवन में आएं यह अच्छी बात है, प्राण भी जाए तो धर्म की आराधना करते हुए जाए। व्रती श्रावक होना भी एक उपलब्धि है। आपने करोड़ों खरबों कमा लिया वो एक भौतिक पूंजी है, व्रती होना एक आध्यात्मिक एवं स्थाई पूंजी है।
आचार्यश्री ने सभी को शनिवार सामायिक एवं नशे से बचने की प्रेरणा दी। किशोरों में भी धार्मिक उत्साह बढ़ता रहे, धर्म के अच्छे संस्कार बने रहे।
कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने भी प्रेरणा प्रदान की। पूज्य प्रवर के मुखारविंद से महानगर मुंबई के अनेकों ने मासखमण, अट्ठाई आदि तप के प्रत्याख्यान कर कृतार्थ हुए।