बोइसर| जो संसार से भयभीत हैं, वह इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने प्रखर पुरुषार्थ कर सकता है। इन्द्रियों को जीतने वाला इन्द्र से भी महान होता है। इंद्रियों का स्थान भययुक्त हैं । इन्द्रियों का स्थान भययुक है, जहां जीव आत्मा को सावधान रहना होता है। जब लालसा के सरोवर में इन्द्रिय- रूपी क्यारियां उगने लगती है, तब विषय-विकार रूपी जागर जहरीले पौधे उत्पन्न होने से जीवात्माएँ मूर्च्छित हो जाती है। जैसे समुद्र श्मशान, पेट और लोग का घड़ा कभी भी नहीं भरता, वैसे ही इन्द्रियों का समूह कभी भी तृप्त नहीं होता। श्रद्धा का मार्ग चयन करके आत्मा स्वयं को तृप्त कर सकती है। मोह राजा की दासियां इंद्रियों ही आत्मा को विषय रूपी बंधनों में जकड़ कर रखती है। जैसे जैसै मोह का जाल फैलने लगता है, वैसे-वैसे जीव इन्द्रियों का गुलाम होने लगता है। इन्द्रियों रूपी घोड़ों की लगाम यदि अपने हाथों मैं है, तो हम गुलाम नहीं बन सकते। इन्द्रियाँ स्विच है, तो मन हम मेन स्विच है। ये सारे स्विच हमारी आत्मा के बीच है। आत्मा का पॉवर हाउस यदि स्वयं के नियंत्रण में हैं, तो हम शक्तिशाली है।
युवा संत मुनि भरत कुमार ने प्रेरक उत्बोधन दिया
बाल संत जयदीप कुमार ने विचार व्यक्त किए ।
सीमा परमार और नीलम परमार ने गीत का संगान किया ।ये जानकारी मीडिया प्रभारी चंद्र प्रकाश P सोलंकी बोइसर ने दी
इन्द्रियाँ स्विच है, तो मन हम मेन स्विच : मुनिश्री अर्हत कुमार
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