- महाश्रमणमय बनी जसोल नगरी, वातावरण में छाया आध्यात्मिक आलोक
- स्वागत में उमड़ा सकल समाज, भव्य स्वागत जुलूस संग शांतिदूत पहुंचे तेरापंथ भवन
- दो दिनों तक जसोलवासियों को मिलेगा गुरु की अमृतवाणी श्रवण का अवसर
06.01.2023, शुक्रवार, जसोल, बाड़मेर (राजस्थान)। सिवांची-मालाणी क्षेत्र की धरा को पावन बनाने रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान गणराज, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के संग शुक्रवार को मालाणी की राजधानी के नाम से विख्यात जसोल नगरी में पधारे। एक दशक बाद अपने आराध्य के अपनी धरा पर आगमन को लेकर मानों पूरा जसोल में अद्भुत उल्लास, उत्साह और उमंग का वातावरण छाया हुआ था। जन-जन का मन मयूर राष्ट्रसंत, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन को लालायित नजर आ रहा था। चारों ओर लगे तोरण द्वार, जैन ध्वज और होर्डिंग्स श्रद्धालुओं की श्रद्धा के अभिव्यक्ति का साधन बने हुए थे। वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि और गूंजते जयघोष से जसोल में एक आध्यात्मिक वातावरण छाया हुआ था। आचार्यश्री जिस मार्ग से गुजर रहे थे, वह पूरी तरह जनाकीर्ण बन रहा था। आचार्यश्री जसोल में स्थित विख्यात रानी भटियाणी माता के मंदिर भी पधारे। यह मंदिर क्षेत्रीय लोगों में विशेष आस्था का स्थान केन्द्र है। आचार्यश्री स्थान-स्थान पर खड़े होकर लोगों की भावनाओं को स्वीकार करते हुए उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे। तेरापंथ धर्मसंघ से अब 47 दीक्षाओं वाले नगर में तेरापंथ के अनुशास्ता के अभिनन्दन में भव्य स्वागत जुलूस का उत्साह अपने चरम पर था। भव्य और विशाल जुलूस के साथ आचार्यश्री तेरापंथ भवन में पधारे।
जसोलवासियों ने तपस्या के माध्यम से महातपस्वी का किया स्वागत
इसके पूर्व आचार्यश्री सिवांची-मालाणी क्षेत्रीय तेरापंथ संस्थान के भवन से गतिमान हुए। जसोल में वर्ष 2012 का चतुर्मास करने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग एक दशक बाद जसोल की धरा को पावन करने पधार रहे थे। महातपस्वी महाश्रमणजी की अभिवंदना में जसोलवासी तो तपस्या की भेंट समर्पित करने को भी आतुर थे। आचार्यश्री के आगमन पर संकलेचा परिवार में सजोड़े संथारे का स्वीकरण हुआ तो वहीं साध्वीवर्याजी के परिवार से जुड़े लोगों ने पचरंगी की तपस्या स्वीकारी। वहीं जसोल के 108 लोगों ने उपवास की तपस्या के द्वारा आचार्यश्री की अभिवन्दना की।
वीतराग समवसरण से शांतिदूत ने आत्मवाद के सिद्धांत को किया प्रतिपादित
वीतराग समवसरण के विशाल परिसर में विशाल जनता की उपस्थिति में आचार्यश्री मंचासीन हुए तो पूरा वातावरण जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। एक दशक बाद अपने आराध्य को अपने उसी मंच पर उपस्थित देख जसोल का जन-जन आह्लादित था। आचार्यश्री ने जसोलवासियों को आत्मवाद के सिद्धांतों प्रतिपादित करते हुए कहा कि जो अपनी आत्मा को साध लेता है, वह सभी दुःखों से मुक्त हो सकता है। आचार्यश्री ने जसोल आगमन के संदर्भ में कहा कि आज जसोल आना हुआ है। दस वर्षों के बाद पुनः जसोल आना हुआ है। यहां परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का मर्यादा महोत्सव, परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा दीक्षा समारोह और यहां चतुर्मास भी हुआ है तो जसोल में खूब अच्छा क्षेत्र है। यहां अनेक सिंघाड़ों की साध्वियों से भी मिलना हो गया है। सभी खूब अच्छा कार्य करती रहें, अपना आध्यात्मिक विकास करती रहें।
चारित्रात्माओं व श्रद्धालुओं ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
आचार्यश्री के अभिनंदन में सर्वप्रथम अपनी धरा पर आचार्यश्री के अभिवंदना में साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने अपनी आस्थासिक्त हृदयोद्गार व्यक्त किए। अपनी दीक्षाभूमि में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। जसोल से संबद्ध साध्वीवृंद ने अपनी एक संवाद की प्रस्तुति दी तो वहीं कुछ साध्वीवृंद ने गीत के माध्यम से अपनी जन्मभूमि में अपने आराध्य की अभिवंदना की। तदुपरान्त तेरापंथी सभा-जसोल के अध्यक्ष श्री उसभराज तातेड़, जसोल के राव श्री किशनसिंह अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल, कन्या मण्डल व ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से स्वागत गीत का संगान किया।