- युगप्रधान आचार्यश्री के स्वागत में उमड़ा श्रद्धा और आस्था का सैलाब
- विशाल स्वागत जुलूस में मिटा जैन-अजैन का भेद, आचार्यश्री ने जन-जन पर की आशीषवृष्टि
- दयाधिकारी बनने का करें प्रयास : अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण
- गुरुकृपा ने निहाल हुआ भुज, आचार्यश्री ने 2025 का मर्यादा महोत्सव भुज में किया घोषित
24.11.2022, गुरुवार, पादुकलां, नागौर (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु की चतुर्मास तथा विहरण भूमि पादुकालां में तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान गुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन पदरज पड़े तो मानों पादुकलां का समूचा वातावरण आध्यात्मिक आलोक से आलोकित हो उठा। जन-जन में ऐसी आस्था, श्रद्धा, उत्साह और उल्लास था कि किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक केवल जन ही जन नजर आ रहे थे, जिनका मात्र एक ही उद्देश्य था जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी का दर्शन और आशीष प्राप्ति। जन-जन का कल्याण करने को निकले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भी जनता पर आशीषवृष्टि करते हुए पादुकलां नगर में पधाकर जनता को दर्शन, आशीर्वाद और पावन पाथेय से लाभान्वित किया।
गुरुवार को प्रातःकाल नथावड़ा से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग प्रस्थान किया तो पादुकलां के उत्साही श्रद्धालु वहां से ही अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए साथ चल पड़े। पादुकलांवासियों में आज नवीन ऊर्जा का मानों संचार हो रहा था। पूरे नगर में एक आध्यात्मिक वातावरण छाया हुआ था। क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं और क्या बालिकाएं सभी अपने घर और नगर को सजाने-संवारने में उत्साह के साथ जुटे हुए थे। पूरा नगर बैनर, पोस्टर, तोरण द्वार और जैन ध्वज से आच्छादित-सा था। आचार्यश्री जैसे-जैसे पादुकलां के निकट पधार रहे थे, श्रद्धालुओं के उत्साह के साथ ही उनकी संख्या भी वृद्धिंगत होती जा रही थी। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही पादुकलां नगर में पधारे, पूरा वातावरण बुलंद जयघोष से गुंजायमान हो उठा। लगभग एक किलोमीटर की दूरी तक स्कूली बच्चों की कतारें और उनके द्वारा उच्चरित जयघोष साथ ही विशाल जनमेदिनी आचार्यश्री की एक झलक पाने को उत्कंठित नजर आने लगी। वहीं से आरम्भ हुआ महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के भव्य स्वागत जुलूस का क्रम। आचार्यश्री श्रद्धालुओं के अनुरोध पर नगर स्थित दोनों गोशालाओं में पधारे और वहां जनता को पावन प्रेरणा भी प्रदान की। तदुपरान्त नगर के विभिन्न स्थानों से होते हुए लोगों को दर्शन देते नगर के बाहरी भाग में स्थित श्री मदन गोरा के निवास स्थान में पधारे।
इस निवास परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में दया और अनुकंपा की भावना रखना जीवन की एक कला होती है। आदमी के चित्त में दया की भावना होती है तो वह किसी को कष्ट नहीं दे सकता। दया, अनुकंपा, त्याग व संयम से भावित मानव दयाधिकारी बन सकता है। आदमी के मन में कोई प्रशासनिक अधिकारी, किसी गांव, क्षेत्र, समाज अथवा राष्ट्र का अधिकारी बनने की भावना होती है, किन्तु जो दयाधिकारी बन जाए, वह सर्वोत्तम बात होती है। आदमी को दयाधिकारी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में त्याग, संयम, दया, अनुकंपा की भावना का विकास हो। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने भी पादुकलांवासियों को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री ने पादुकलां पदार्पण के संदर्भ में कहा कि आज परम पूजनीय आचार्य भिक्षु की चतुर्मास भूमि पर विहरण भूमि पादुकलां में आना हुआ है। यहां के लोगों में दया, अनुकंपा और त्याग की भावना का विकास होता रहे, लोगों में आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता रहे। आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित पादुकलांवासियों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार कर अपने जीवन को धन्य बनाया।
अपने नवनिर्मित भवन में युगप्रधान आचार्यश्री के आगमन से हर्षित श्री मदन गोरा, तेरापंथी सभा-पादुकलां की ओर से श्री ज्ञानचंद आंचलिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व कन्या मण्डल तथा तेरापंथ युवक परिषद ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया।
कच्छ-भुज से गुरु सन्निधि में पहुंचे श्रद्धालुओं की ओर से श्री शांतिलाल जैन, श्री बाबूलाल सिंघी, श्री कीर्तिभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त आचार्यश्री ने कच्छ-भुजवासियों पर कृपा बरसाते हुए घोषणा करते हुए कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अनुकूलता के अनुसार वर्ष 2025 का मर्यादा महोत्सव भुज में करने का भाव है। आचार्यश्री के श्रीमुख से घोषणा सुनकर पूरा प्रवचन पंडाल जयकारों से गूंज उठा। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री तथा साध्वीवर्याजी ने भी कच्छ-भुजवासियों को उद्बोधित किया।