पालघर। आचार्य श्री महाश्रमण के निर्देशन में उपासक प्राध्यापक श्री. डालमचंद जी नोलखा व उपासक श्री. महावीर जी चोरडिया के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का पांचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया। मंगलाचरण अणुव्रत गीत द्वारा किया गया।
इस अवसर पर उपासक प्राध्यापक डालमचंद जी नोलखा जी ने संबोधित करते हुए कहा अणुव्रत और महाव्रत धर्म के दो रूप है। सब महाव्रती नहीं हो सकते लेकिन घर गृहस्थ में रहकर वे अणुव्रतो की साधना कर सकते हैं। आचार्य तुलसी ने नैतिक मूल्यों व चारित्रिक उन्नयन के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत यानी जीवन शुद्धि की न्यूनतम आचार संहिता। अणुव्रत केवल आचार संहिता ही नहीं अपितु जीवन का दर्शन है। जीवन जीने की कला है। स्वयं को स्वयं से जोड़ने की प्रक्रिया है। किसी भी वर्ग, जाति, संप्रदाय का व्यक्ति अणुव्रत के नियमों को स्वीकार कर सकता है। यह धर्म और व्यवहार का सेतु है। देश को अणुबम कि नहीं अणुव्रत की अपेक्षा है। आचार्य तुलसी मानवता के मसीहा थे।
मानवीय एकता के पक्षधर थे। अणुव्रतों के नियमों से स्वीकार करने से व्यक्ति भव परंपरा को कम कर सकता है। कार्यक्रम में सभा अध्यक्ष देविलाल जी सिंघवी, अणुव्रत समिति अध्यक्ष्या रेणुका बाफना ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। समाचार प्रदाता दिनेश राठोड़।
पालघर में पर्युषण का पांचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया
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