- भगवती सूत्र में वर्णित जीवों के श्वसन प्रक्रिया को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
- कालूयशोविलास का सुमधुर और रोचक वर्णन का क्रम है जारी
16.08.2022, मंगलवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। गत तीन दिनों से आसमान में छाए मेघों से यदा-कदा होने वाली तीव्र अथवा रिमझिम बरसात से चूरू जिले के छापर कस्बे का मौसम सुहावना बना हुआ है। ऐसे सुहावने मौसम में छापर में चतुर्मास प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं के आने का क्रम निरंतर जारी है। मौसम की अनुकूलता के कारण लोगों को चूरू जिले की तपिश से मानों इस दौरान निजात-सी मिली हुई है।
मंगलवार को प्रातःकाल छापर चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण मंे उपस्थित जनता को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज से लगभग 2500 वर्ष भगवान महावीर साक्षात् रूप से विराजमान थे। उनके अंतेवासी गौतम ने उनसे अनेक प्रश्न किए, जिनका उत्तर भगवान महावीर ने दिया। वे प्रश्नोत्तर मानों पथदर्शक बने हुए हैं। भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया है कि दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय वाले छोटे-बड़े प्राणी उच्छवास-निश्वास करते हैं, आन-अपान करते हैं तो इन्हें तो हम स्पष्ट रूप से जानते हैं और देखते भी हैं, किन्तु स्थावरकाय के जीव जो एकेन्द्रिय, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय, वनस्पतिकाय, वायुकाय के जीव भी श्वास लेते हैं क्या? उत्तर दिया गया कि हां, ये सारे जीव भी उच्छवास-निश्वास करते हैं।
जैन आगम में इन्द्रियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण किया गया है। श्वास मानों जीवन का लक्षण है। श्वसन क्रिया होती है तो वह प्राणी जीवित माना जाता है और यदि श्वसन प्रक्रिया समाप्त हो जाती है तो जीवन समाप्त हो जाता है। एकेन्द्रिय जीवों को भी सजीव होते हैं। पृथ्वी, पानी, अग्नि आदि के जीव भी श्वसन क्रिया करते हैं। एक प्रश्न यह भी हो सकता है कि सारे जीव श्वसन प्रक्रिया तो वायु से पूर्ण करते हैं तो वायुकाय के जीव श्वसन क्रिया कैसे करते हैं? उत्तर दिया गया कि वायुकाय के जीव दो प्रकार के होते हैं-सजीव और निर्जीव। सजीव वायुकाय के जीव निर्जीव वायुकाय का भक्षण कर अपनी श्वसन क्रिया पूर्ण करते हैं।
आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को विशेष अवबोध प्रदान करते हुए कहा कि श्वास लेना तो प्रथम कोटि की अपेक्षा होती है। जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता श्वास है। रोटी, कपड़ा, मकान, पानी आदि के बिना तो कई दिनों तक जीवित रहा जा सकता है कि श्वास के बिना तो आदमी कुछ समय में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए। आदमी को सामान्य तौर पर श्वास आता है। आदमी को अपनी श्वास को अच्छी तरह से लेने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान की बात बताई। इसके माध्यम से आदमी को श्वास की प्रेक्षा करने की प्रेरणा दी गई। आदमी को अपने श्वास के साथ धर्म को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। श्वास के साथ मन में कोई मंत्र जगे। श्वास लेते और छोड़ते समय मंत्र का जप चलता रहे तो जीवन में धर्म की प्रभावना हो सकती है। आदमी का आगे का जीवन भी प्रशस्त हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास सुमधुर आख्यानशृंखला को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम में छापर चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा छापर प्रवेश गीत का लोकार्पण किया गया। इस संदर्भ में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था के प्रचार-प्रसार मंत्री श्री नरेन्द्र नाहटा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस दौरान पूज्य सन्निधि में सूरत से बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के समक्ष वीडियो आदि के माध्यम से वर्ष 2024 का चतुर्मास सूरत में करने की घोषणा करने का पुरजोर निवेदन किया। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।