- छापर की धरा पर महातपस्वी कर रहे भगवती सूत्र आगमाधारित व्याख्यान
- कालूयशोविलास आख्यान: अष्टमाचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हुए मुनि कालू (छापर)
- राजस्थान हाईकोर्ट के तीन जज सपरिवार आशीष लेने पहुंचे पूज्य सन्निधि में
31.07.2022, रविवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। जन-जन के मानस से समाप्त हो रही मानवता के को जागृत करने, जन-जन को भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्त नया प्रशस्त सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के सक्षम प्रतिनिधि, मानव मात्र के आध्यात्मिक गुरु, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के चतुर्मास के कारण छापर की फिजा ही बदल गई है। वर्तमान में यहां का वातावरण धर्ममय बना हुआ है। छापर की गलियां, सड़कें और पगडंडियां श्रद्धालुओं के आवागमन से दिन-रात गुलजार बनी हुई हैं। छापरवासी 74 वर्षों बाद ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर आह्लादित हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने छापरवासियों पर विशेष कृपा करते हुए अपने मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में भवगती सूत्र जैसे विशालकाय आगम के माध्यम से विविध प्रेरणाएं प्रदान कर रहें तो वहीं गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित ग्रंथ ‘कालूयशोविलास’ के रोचक आख्यान के माध्यम से श्रद्धालुओं को आचार्य कालूगणी के जीवनवृत्त का वर्णन कर रहे हैं। आचार्यश्री का स्थानीय भाषा में इसका आख्यान सुनकर श्रद्धालु पूरे कार्यक्रम के दौरान भावविभोर नजर आ रहे हैं।
रविवार को आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के आधार पर विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं तो वहीं कालूयशोविलास के आख्यान शृंखला में सप्तमाचार्य डालगणी के महाप्रयाण के उपरान्त मुनि कालू (छापर) को अष्टमाचार्य के रूप में पट्टासीन करने व उनके आचार्यकाल के शुभारम्भ का रोचक वर्णन भी सुनाया। दूसरी ओर मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के उपरान्त आचार्यश्री अपने प्रवास स्थल में पधारे ही थे कि राजस्थान हाईकोर्ट के तीन जज श्री अरुण भंसाली, श्री दिनेश मेहता व श्री मनोज गर्ग सपरिवार दर्शनार्थ उपस्थित हुए। आचार्यश्री ने तीनों जजों को विविध प्रेरणाएं प्रदान करने के साथ ही मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया।
रविवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने भगवती सूत्राधारित अपने पावन प्रवचन में आठ प्रकार के लोकस्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी को ज्ञान होने के बाद छोड़ने योग्य चीजों को छोड़ना और ग्रहण करने योग्य चीजों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की समृद्धि का द्योतक उन्नत आचार ही होता है। भगवती सूत्र में अनेक ज्ञान की बातें बताई गई हैं। जिसको जितना समय मिले स्वाध्याय करते हुए अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आज अनेकानेक ग्रंथ उपलब्ध हैं, उनके माध्यम से ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान के माध्यम से आचार्य डालगणी के महाप्रयाण के उपरान्त संतों द्वारा मुनि कालू (छापर) को पट्ट पर बिठाने, तदुपरान्त आचार्य डालगणी द्वारा लिखित पत्र को मुनि मगनकुमारजी द्वारा सुनाया गया। तदुपरान्त भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा को पट्टोत्सव का आयोजन हुआ। उसके उपरान्त आचार्य कालूगणी का आचार्यकाल आरम्भ हो गया।
कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य महाप्रज्ञजी की पुस्तक ‘महापर्व पुर्यषण’ को लोकार्पित किया गया तथा कुछ पुस्तकों को आडियों रूप में भी जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों के द्वारा लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।