– आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा के निर्माण पर लगाई लगा
संजय रोकड़े/भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा शासित शिवराज सिंह चौहान की सरकार हिन्दू तुष्टीकरण के नाम पर हिन्दूओं के धार्मिक स्थलों का स्वरुप बिगड़ने के साथ ही उनको तबाह करने में जरा भी हिचकिचा नही रही है। हालाकि भला हो उस हाईकोर्ट का जिसने हिन्दुओं के तुष्टीकरण के नाम पर गैर वाजिब फैसले लेने वाली शिवराज सरकार को कटघरे में खडा करके धार्मिक स्थल को तबाह होने से बचा लिया। काबिलेगौर हो कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ‘एकात्म यात्रा’ निकालकर खंडवा ज़िले के ओंकारेश्वर में ” आदि शंकराचार्य ” की 108 फीट ऊंची प्रतिमा के निर्माण की घोषणा की थी।
इस मामले में बीते दिनों ” निमाड़ महासंघ” के अलावा पर्यावरण कार्यकर्ताओं से लेकर ओंकारेश्वर के साधु-संतों और स्थानीय नागरिकों ने मिलकर 2,141 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी।
इन सबकी जायज मांग को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश के खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में बनने वाली ” आदि शंकराचार्य ” की 108 फीट ऊंची प्रतिमा के निर्माण पर हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
समाचार एजेंसी आईएएनएस की खबर के मुताबिक, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलीमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस सम्बंध में राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है। साथ ही साथ इस नोटिस में राज्य सरकार को प्रकृति की क्षति व स्थानीय जनता की आस्था की उपेक्षा करने को लेकर जवाब भी मांगा है।
बता दे कि कोर्ट ने खंडवा कलेक्टर, डीएफओ, राजस्व अधिकारी और राज्य पुरातत्व विभाग से भी जवाब तलब किया है। इन सभी से अगले चार हफ्तों में जवाब पेश करने के लिए कहा गया है और अदालत के समक्ष मामला विचाराधीन होने के दौरान जारी निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए आदेश दिया है।
सनद रहे कि याचिका इंदौर के एक एनजीऔ की ओर से लगाई गई थी। याचिकाकर्ता एनजीओ ने निर्माण स्थल पर पेड़ों को काटने और पहाड़ की खुदाई का भी खासा विरोध किया है।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए ‘ओम (ॐ)’ की आकृति वाली मंधाता पहाड़ी को नष्ट कर रही है। शिवराज सरकार इस पवित्र तीर्थ स्थल से ( ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर) सैकड़ों पेड़ काटकर पिकनिक स्पॉट में तब्दील करना चाहती है।
काबिलेगौर हो कि यह प्रदेश भाजपा सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में की थी। 2018 के विधानसभा चुनावों से कुछ माह पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश भर में महीने भर तक एकात्म यात्रा निकालकर प्रतिमा निर्माण के लिए धातु संग्रहण भी किया था, जिसके माध्यम से घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क किया गया और जगह-जगह मंच सजाकर पूरे प्रदेश में साधु-संतों का जमावड़ा लगाया था।
अष्टधातु से निर्मित होने वाली इस 108 फीट ऊंची “आदि शंकराचार्य” की प्रतिमा को लेकर उन्होंने यात्रा के दौरान हर सभा में यही कहा था कि ‘ यह प्रतिमा सरकारी नहीं होगी। जनता के सहयोग से बनेगी। हर गांव से इकट्ठा की गई मिट्टी से बनेगी। कलश का धातु गलाकर फाउंडेशन बनाया जाएगा। इसी फाउंडेशन पर प्रतिमा खड़ी होगी। इसका आधार हमने हर गांव को बनाया है। हर गांव की मिट्टी आए हर मनुष्य इससे जुड़ जाए।’
लेकिन बाद में शुरू से ही राजनीतिक रूप लिए हुए इस प्रतिमा निर्माण के लिए शिवराज कैबिनेट ने 2,141 करोड़ रुपये की लागत से “आदि शंकराचार्य” की प्रतिमा के साथ-साथ उन्हें समर्पित एक संग्रहालय और एक अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में राज्य सरकार ने इसके लिए 700 करोड़ रुपये का प्रावधान किया ताकि बिना देरी के परियोजना पर काम शुरू हो सके। लेकिन आपको यह जानकर बडी हैरनी होगी कि हिन्दू तुष्टीकरण के साथ ही चुनावी लाभ लेने वाली इस परियोजना का स्थानीय स्तर पर खासा विरोध हो रहा है। “निमाड़ महासंघ” के अलावा पर्यावरण कार्यकर्ताओं से लेकर ओंकारेश्वर के साधु-संतों और स्थानीय नागरिकों ने इसके खिलाफ तेज आवाज उठाई है। मामले को सरकार के समक्ष उठाने के लिए मई के पहले हफ्ते में संत और इंदौर की भारत हितरक्षा अभियान नामक एनजीओ के सदस्य संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर से भी मिले थे और परियोजना का स्थान बदलने की मांग की थी।
बता दे कि स्थानीय लोगों, संतों और विभिन्न एनजीओ ने अनेक जिलों में इसके खिलाफ हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था। इंदौर से ओंकारेश्वर तक 90 किलोमीटर की पद यात्रा भी निकाली गयी थी। साथ ही, खंडवा कलेक्टर कार्यालय, इंदौर कमिश्वर और राजधानी भोपाल में प्रदर्शन भी किये गये थे।
सनद रहे कि 50,000 से अधिक हस्ताक्षरों के साथ एक ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजा गया था जिसमें उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की गयी थी। इसके अलावा बीते दिनों जब खंडवा जिला प्रशासन ने 12 घरों और आश्रमों समेत अन्य 12 ढांचे अवैध बताते हुए गिरा दिए थे तो स्थानीय नागरिकों ने उसका भी भारी विरोध किया दर्ज किया था।
राजधानी भोपाल में मुद्दा उठाने के लिए भी संतों और भक्तों ने वहां दो दिन का हस्ताक्षर अभियान चलाया था। पचास से अधिक प्रदर्शनकारी इस दौरान वहां मौजूद थे, जिन्हें पुलिस ने जबरन हटा दिया था।
बहरहाल हाई कोर्ट ने इस हिन्दू तुष्टीकरण वाली परियोजना पे रोक लगा कर तमाम सामाजिक संगठनों की जायज मांग को मानकर राहत देने का काम किया है। इस सकारात्मक फैसले के चलते ” निमाड़ महासंघ ” ने हाई कोर्ट का आभार माना है।